क्रांति १८५७
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झांसी की रानी का ध्वज

स्वाधीन भारत की प्रथम क्रांति की 150वीं वर्षगांठ पर शहीदों को नमन
वर्तमान भारत का ध्वज
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क्रांति १८५७
 

प्रस्तावना

  रुपरेखा
  1857 से पहले का इतिहास
  मुख्य कारण
  शुरुआत
  क्रान्ति का फैलाव
  कुछ महत्तवपूर्ण तथ्य
  ब्रिटिश आफ़िसर्स
  अंग्रेजो के अत्याचार
  प्रमुख तारीखें
  असफलता के कारण
  परिणाम
  कविता, नारे, दोहे
  संदर्भ

विश्लेषण व अनुसंधान

  फ़ूट डालों और राज करो
  साम,दाम, दण्ड भेद की नीति
  ब्रिटिश समर्थक भारतीय
  षडयंत्र, रणनीतिया व योजनाए
  इतिहासकारो व विद्वानों की राय में क्रांति 1857
  1857 से संबंधित साहित्य, उपन्यास नाटक इत्यादि
  अंग्रेजों के बनाए गए अनुपयोगी कानून
  अंग्रेजों द्वारा लूट कर ले जायी गयी वस्तुए

1857 के बाद

  1857-1947 के संघर्ष की गाथा
  1857-1947 तक के क्रांतिकारी
  आजादी के दिन समाचार पत्रों में स्वतंत्रता की खबरे
  1947-2007 में ब्रिटेन के साथ संबंध

वर्तमान परिपेक्ष्य

  भारत व ब्रिटेन के संबंध
  वर्तमान में ब्रिटेन के गुलाम देश
  कॉमन वेल्थ का वर्तमान में औचित्य
  2007-2057 की चुनौतियाँ
  क्रान्ति व वर्तमान भारत

वृहत्तर भारत का नक्शा

 
 
चित्र प्रर्दशनी
 
 

क्रांतिकारियों की सूची

  नाना साहब पेशवा
  तात्या टोपे
  बाबु कुंवर सिंह
  बहादुर शाह जफ़र
  मंगल पाण्डेय
  मौंलवी अहमद शाह
  अजीमुल्ला खाँ
  फ़कीरचंद जैन
  लाला हुकुमचंद जैन
  अमरचंद बांठिया
 

झवेर भाई पटेल

 

जोधा माणेक

 

बापू माणेक

 

भोजा माणेक

 

रेवा माणेक

 

रणमल माणेक

 

दीपा माणेक

 

सैयद अली

 

ठाकुर सूरजमल

 

गरबड़दास

 

मगनदास वाणिया

 

जेठा माधव

 

बापू गायकवाड़

 

निहालचंद जवेरी

 

तोरदान खान

 

उदमीराम

 

ठाकुर किशोर सिंह, रघुनाथ राव

 

तिलका माँझी

 

देवी सिंह, सरजू प्रसाद सिंह

 

नरपति सिंह

 

वीर नारायण सिंह

 

नाहर सिंह

 

सआदत खाँ

 

सुरेन्द्र साय

 

जगत सेठ राम जी दास गुड वाला

 

ठाकुर रणमतसिंह

 

रंगो बापू जी

 

भास्कर राव बाबा साहब नरगंुदकर

 

वासुदेव बलवंत फड़कें

 

मौलवी अहमदुल्ला

 

लाल जयदयाल

 

ठाकुर कुशाल सिंह

 

लाला मटोलचन्द

 

रिचर्ड विलियम्स

 

पीर अली

 

वलीदाद खाँ

 

वारिस अली

 

अमर सिंह

 

बंसुरिया बाबा

 

गौड़ राजा शंकर शाह

 

जौधारा सिंह

 

राणा बेनी माधोसिंह

 

राजस्थान के क्रांतिकारी

 

वृन्दावन तिवारी

 

महाराणा बख्तावर सिंह

 

ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव

क्रांतिकारी महिलाए

  1857 की कुछ भूली बिसरी क्रांतिकारी वीरांगनाएँ
  रानी लक्ष्मी बाई
 

बेगम ह्जरत महल

 

रानी द्रोपदी बाई

 

रानी ईश्‍वरी कुमारी

 

चौहान रानी

 

अवंतिका बाई लोधो

 

महारानी तपस्विनी

 

ऊदा देवी

 

बालिका मैना

 

वीरांगना झलकारी देवी

 

तोपख़ाने की कमांडर जूही

 

पराक्रमी मुन्दर

 

रानी हिंडोरिया

 

रानी तेजबाई

 

जैतपुर की रानी

 

नर्तकी अजीजन

 

ईश्वरी पाण्डेय

 
 

पश्चिमी बंगाल

1857 की क्रांति में बंगाल का अत्यधिक योगदान था। ऐतिहासिक रू प से 1757 में सिराजुद्दौला ने ब्रितानियों का तीव्रतम विरोध किया था जो प्लासी के युद्ध में परिणित हो गया था। अगर, मीरजाफ़र ने सिराजुद्दौला को धोखा न दिया होता तो शायद इस देश का भविष्य अलग होता क्योंकि इसी युद्ध के बाद ब्रितानी देश में स्थापित हो गये तथा उन्होने अपना साम्राज्य फ़ैलाया। यहाँ यह लिखना जरू री है कि ब्रितानी हमेशाा चालाकी व धूर्तता के साथ फ़ूट डालो व राज करो की नीति में विश्‍वास करते थे। क्लाइव लॉयड ने मीर जाफ़र को सिराजुद्दौला के विरुद्ध भड़काया तथा उसको कमजोर कर दिया।

1857 में जब क्रांति का संगठन पूर्ण हो रहा था उस समय ब्रिटिश सरकार द्वारा चरबी वाले कारतूसों को बंगाल के सैनिकों पर लादने की जबरदस्ती की जा रही थी। बंगाल में छावनी डालकर रही हुई टुकडियों में 34वीं टुकड़ी फ़रवरी में विद्रोह के लिये अति उत्सुक हो गई थी। यह टुकड़ी बैरकपुर की थी। नये कारतूसों के प्रथम प्रयोग के अवसर पर पूरी टुकड़ी ने खुले रू प से आज्ञा ठुकरा दी। ब्रितानियों को यह अपमान चुपचाप निगलना पड़ा। कारण यह था कि सैनिकों को डराने के लिये उस समय उनके पास गोरी पलटनों का अभाव था।

मार्च के आरंभ में ब्रह्मदेश से एक ब्रितानी टुकड़ी कलकत्ता बुलाई गई। उस समय मंगल पांडे जो एक ब्राह्मण थे एक वीर युवा सैनिक के नाते विख्यात हुए। उन्होंने आग्रहपूर्वक हठ किया कि अपनी सब टुकडी को विद्रोह करना चाहिये। उन्होंनेे तुरंत बंदूक उठाई व संचलन भूमि की और दौडे व आजादी के लिये ब्रितानी शत्रुओं पर धावा बोल दिया।

इस क्रांति में मंगल पांडे ने कई ब्रितानी सिपाहियों व अधिकारियों को मौत के घाट उतारा लेकिन हिम्म्मत नहीं हारी। जब अंत में अकेले हो गये तो उन्होंने ब्रितानियों के हाथ से मरने के बजाय खुद मरना स्वीकार किया। उन्होंने खुद को गोली मार दी और बुरी तरह से घायल हो गये। कुछ समय तक अस्पताल में इनका इलाज चला।

ब्रिटिश सरकार ने 8 अप्रेल 1857 को मंगल पांडे का कोर्ट मार्शल किया व उनको फ़ांसी पर चढ़ा दिया गया। रेजिमेंण्ट के जिन सिपाहियों ने मंगल पांडे का विद्रोह में साथ दिया ब्रिटिश सरकार ने उनको सेना से निकाल दिया और पुरी रेजिमेंण्ट को खत्म कर दिया। अन्य सिपाहियों ने इस निर्णय का विरोध किया। वे इस अपमान का बदला लेना चाहते थे। इसी विरोध ने 1857 कीक्रांति को हवा दी धीरे- धीरे ये लहर हर जगह फ़ैलती गई।

बैरकपुर

फ़रवरी 1857 में कलकत्ता से 30 किमी. दूर स्थितबैरकपुर के सैनिकोंें की 19वीं पलटन को नये कारतूस दिये गये परंतु सिपाहियों ने नये कारतूसों का उपयोग करने से मना कर दिया। बाद में सैनिकोंें को संदेश मिला कि ब्रितानी बर्मा से गोरों की पलटन बुलाकर जल्द ही देशी सिपाहियों को निःशस्त्र कर देंगे। यह समाचार मिलते ही 31 मई को सैनिक क्रांति करने के लिये उत्साहित थे परंतु हिन्दुस्तानी अधिकारियों ने उन्हें रुकने के लिए कहा।

लेकिन जोशीले मंगल पांडे यह सहन नहीं कर पाए और 29 मार्च को उन्होंने खुली बगावत का आह्‌वान कर दिया। उन्होंने 2 ब्रिटिश अधिकारियों को मार गिराया, लेकिन खुद के पकडे़ जाने की संभावना देख कर खुद पर गोली चला दी। जख्मी हालत में उनको गिरफ़्तार कर उनका कोर्ट मार्शल किया गया और उन्हें फ़ांसी की सजा सुनायी गयी। लोगों ने देशभक्त की पहचान कर ली थी अत: बैरकपुर में फ़ांसी देने के लिए कोई नहीं मिला। कलकत्ता से आदमी लाना पड़ा। 8 अप्रैल को उनको फ़ांसी दी गयी। जल्द ही 19 व 34 नंबर की पलटनें बरखास्त कर दी गई व गुप्त योजना में शामिल सूबेदार को फ़ांसी दे दी गयी। परंतु सभी ने 31 मई तक शंात रहने का निश्चय किया।

बैरकपुर की खबर पूरे देश भर में फ़ैली व क्रांतिकारी सिपाही अब मंगल पांडे के नाम से शपथ लेने लगे। चर्बी के कारतूसों का मामला पूरी फ़ौज में गरमाने लगा। फ़िर भी, पूरा अप्रैल शंात बीत जाने से ब्रितानियों को व्यापक योजना की भनक नहीं लग पायी। यह विशेष बात रही कि इतने व्यापक प्रचार के बाद भी कोई मुखबिरी नहीं हुई। कुछ पत्र जरू र ब्रितानियों के हाथ में लगे परन्तु वे इतने सांकेतिक थे कि कुछ पता नहीं चल पाया। कुछ प्रचार करने वाले संयासी, मौलवी भी पकडे़ भी गये, परंतु उसे सामान्य असंतोष ही माना गया।

क्रांति १८५७

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