क्रांति १८५७
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यह वेबसाईट इस महान राष्ट्र को सादर समर्पित।

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झांसी की रानी का ध्वज

स्वाधीन भारत की प्रथम क्रांति की 150वीं वर्षगांठ पर शहीदों को नमन
वर्तमान भारत का ध्वज
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क्रांति १८५७
 

प्रस्तावना

  रुपरेखा
  1857 से पहले का इतिहास
  मुख्य कारण
  शुरुआत
  क्रान्ति का फैलाव
  कुछ महत्तवपूर्ण तथ्य
  ब्रिटिश आफ़िसर्स
  अंग्रेजो के अत्याचार
  प्रमुख तारीखें
  असफलता के कारण
  परिणाम
  कविता, नारे, दोहे
  संदर्भ

विश्लेषण व अनुसंधान

  फ़ूट डालों और राज करो
  साम,दाम, दण्ड भेद की नीति
  ब्रिटिश समर्थक भारतीय
  षडयंत्र, रणनीतिया व योजनाए
  इतिहासकारो व विद्वानों की राय में क्रांति 1857
  1857 से संबंधित साहित्य, उपन्यास नाटक इत्यादि
  अंग्रेजों के बनाए गए अनुपयोगी कानून
  अंग्रेजों द्वारा लूट कर ले जायी गयी वस्तुए

1857 के बाद

  1857-1947 के संघर्ष की गाथा
  1857-1947 तक के क्रांतिकारी
  आजादी के दिन समाचार पत्रों में स्वतंत्रता की खबरे
  1947-2007 में ब्रिटेन के साथ संबंध

वर्तमान परिपेक्ष्य

  भारत व ब्रिटेन के संबंध
  वर्तमान में ब्रिटेन के गुलाम देश
  कॉमन वेल्थ का वर्तमान में औचित्य
  2007-2057 की चुनौतियाँ
  क्रान्ति व वर्तमान भारत

वृहत्तर भारत का नक्शा

 
 
चित्र प्रर्दशनी
 
 

क्रांतिकारियों की सूची

  नाना साहब पेशवा
  तात्या टोपे
  बाबु कुंवर सिंह
  बहादुर शाह जफ़र
  मंगल पाण्डेय
  मौंलवी अहमद शाह
  अजीमुल्ला खाँ
  फ़कीरचंद जैन
  लाला हुकुमचंद जैन
  अमरचंद बांठिया
 

झवेर भाई पटेल

 

जोधा माणेक

 

बापू माणेक

 

भोजा माणेक

 

रेवा माणेक

 

रणमल माणेक

 

दीपा माणेक

 

सैयद अली

 

ठाकुर सूरजमल

 

गरबड़दास

 

मगनदास वाणिया

 

जेठा माधव

 

बापू गायकवाड़

 

निहालचंद जवेरी

 

तोरदान खान

 

उदमीराम

 

ठाकुर किशोर सिंह, रघुनाथ राव

 

तिलका माँझी

 

देवी सिंह, सरजू प्रसाद सिंह

 

नरपति सिंह

 

वीर नारायण सिंह

 

नाहर सिंह

 

सआदत खाँ

 

सुरेन्द्र साय

 

जगत सेठ राम जी दास गुड वाला

 

ठाकुर रणमतसिंह

 

रंगो बापू जी

 

भास्कर राव बाबा साहब नरगंुदकर

 

वासुदेव बलवंत फड़कें

 

मौलवी अहमदुल्ला

 

लाल जयदयाल

 

ठाकुर कुशाल सिंह

 

लाला मटोलचन्द

 

रिचर्ड विलियम्स

 

पीर अली

 

वलीदाद खाँ

 

वारिस अली

 

अमर सिंह

 

बंसुरिया बाबा

 

गौड़ राजा शंकर शाह

 

जौधारा सिंह

 

राणा बेनी माधोसिंह

 

राजस्थान के क्रांतिकारी

 

वृन्दावन तिवारी

 

महाराणा बख्तावर सिंह

 

ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव

क्रांतिकारी महिलाए

  1857 की कुछ भूली बिसरी क्रांतिकारी वीरांगनाएँ
  रानी लक्ष्मी बाई
 

बेगम ह्जरत महल

 

रानी द्रोपदी बाई

 

रानी ईश्‍वरी कुमारी

 

चौहान रानी

 

अवंतिका बाई लोधो

 

महारानी तपस्विनी

 

ऊदा देवी

 

बालिका मैना

 

वीरांगना झलकारी देवी

 

तोपख़ाने की कमांडर जूही

 

पराक्रमी मुन्दर

 

रानी हिंडोरिया

 

रानी तेजबाई

 

जैतपुर की रानी

 

नर्तकी अजीजन

 

ईश्वरी पाण्डेय

 
 

आन्ध्र प्रदेश

सन्दर्भ

Book: South India In 1857 War Of Independence
Author : V.D. Divekar
Publisher : Lokmany Tilak Smarak Trust
1651 Sadashiv Path
Pune 411030

पुस्तक : 1857 के स्वाधीनता संग्राम में दक्षिण भारत कायोगदान
लेखक : डा.वा.द.दिवेकर
अनुवादक : डॉ. कैलाश शंकर कुलश्रेष्ठ भाषा : हिन्दी
प्रकाशक : भारतीय इतिहास संकलन समिति,
ब्रज प्रांत, 173, माधव भवन,
वीर सावरकर नगर, आगरा।
उत्तर प्रदेश
पिन 282010

आधुनिक आन्ध्र प्रदेश नामक प्रांतीय सीमा के अन्तर्गत अंग्रेजों के विरू द्ध अनेक संघर्ष हुए। विद्रोह के प्रमुख केन्द्र हैदराबाद, राज महेन्द्री, कुरनूल, गंटूर कडप्पा और विशाखापट्टनम से लेकर नैलोर तक की समुद्री पट्टी थी। हैदराबाद में इसके स्थानीय नेता सोनाजी पंत, रंगाराव पांगे, मौलवी सैयद अलाउद्दीन थे। जून 1857 में सशस्त्र रोहिलाओं के कुछ सैनिक दस्ते, अपने को निजाम का समर्थक कहते हुए, निजाम के राज्य में कडप्पा तक पहंुच गये। वे नाना साहेब की जय बोल रहे थे। वे अब मुगल बादशाह या निजाम को अपना स्वामी नहीं मान रहे थे। 28 जुलाई 1857 को ब्रिटिश सरकार को एक गुप्त षड़यन्त्र की जानकारी मिली, जो बेलगांव, मैसुर तथा मद्रास तक फ़ैला था। हैदराबाद के सोना जी पंत ने रंगाराव पांगे के द्वारा एक पत्र नाना साहेब को भेजा। इसके परिणामस्वरू प 18 अप्रैल 1858 को उनका घोषणा पत्र और समूचे दक्षिण भारत में भेजा गया। बाद में रंगाराव पांगे की गिरफ़्तार कर अन्डमान भेज दिया गया। गंजम के राधाकृ ष्ण दंडसेनको अंग्रेजी प्रतिशोध के फ़लस्वरुप फ़ांसी की सजा हुई थी। विशाखापट्टनम में दीवारों पर अंग्रेजी के खिलाफ़ तेलगू भाषा में पर्चे लगाये गये। 1858 में गोलकुण्डा तथा राजमहेन्द्री में विद्रोह हुए। ये विरोध गंटूर तक फ़ैला था। बाद में नाना साहेब के नेपाल चले जाने पर भी उनके छोटे भाई राव साहब ने संघर्ष जारी रखा था। उन्हें रनसिंगी में पकड़ लिया गया था पर वे भाग गये थे। 1862 में जम्मू प्रांत में चेनानी ग्राम में वे पकडे़ गये तथा कानपुर में उन्हें फ़ांसी दे दी गई।


दक्षिणी आंध्र में विप्लव

(कडप्पा, करनूल, नैलोर)

जून, 1857
1857 : जून कडप्पा में रुद्रवरम गाँव पर आक्रमण।
1857 : जुलाई कडप्पा में कामवम शहर पर आक्रमण।
1857 : अगस्त शेख़ पीर शाह द्वारा 30वीं स्थानीय पैदल पलटन का विद्रोह उलट दिया गया।
1857 : सितम्बर शेख़ पीर शाह और कृष्णामाचारी की गिरफ़्तारी।
1857 : दिसंबर, नैलोर में सेना व शहर के व्यक्तियों द्वारा विप्लव समाप्त।

युद्ध के प्रारंभ से, रोहिलों ने कडप्पा तथा करनूल ज़िलों में हमले किए। उनमें से 400 व्यक्तियों के एक दल ने 15 जून, 1857 को बेल्लारी से लगभग 50 मील दूर, कडप्पा ज़िले के एक गाँव रुद्रवरम में आक्रमण किया और हैदराबाद के क्षेत्र में कृष्णा नदी के पार लूट-पाट करके निकल भागे। ब्रिटिश सरकार द्वारा यह ध्यान दिया गया कि रोहिले आपूर्ति प्राप्त करने के अतिरिक्त लूट में अन्य कोई कार्य नहीं करते थे। इन्हीं का पीछा करने को बेल्लारी के मजिस्ट्रेट ने कुरनूल और कडप्पा की पुलिस को स्थानीय पैदल टुकडियों सहित यहाँ भेजा था।

17 जुलाई, 1857 को हैदराबाद के प्रतिनिधि निवास पर राजद्रोहियों द्वारा आक्रमण किया गया  उनमें से कुछ कुरनूल व कडप्पा की तरफ प्रमुख धारा में पुन: मिल गए। इसका संदर्भ देते हुए मद्रास प्रबंध रिपोर्ट 1857-58 यह निष्कर्ष निकालती है कि "यह शंका की जा सकती है कि उनका (रोहिले) लूट के अतिरिक्त दूसरा उद्देश्य भी था, वे सफलता से आक्रमण करते थे, तुरंत ही दूसरे स्थान पर विस्फोट कर देते थे।" रिपोर्ट में 'राजनीतिक उद्देश्य' का भाव छिपा था। pegueeF & 1857 में रोहिलों ने कामवम पर आक्रमण किया, उनमें से 200 व्यक्तियों ने कृष्णा नदी को पार कर माधवपुरम घाट को हथिया लिया। उनकी फौंजें पाकसला की पहाडियों पर करनूल के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी दिखाई दीं।

जब ये आक्रमण चल रहे थे, तब कडप्पा में स्थित 30वी मद्रास स्थानीय पैदल पलटन में, ब्रिटिश फ़ौजी सिपाहियों में एक गंभीर क्रांति का प्रयत्न हुआ। यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि कडप्पा का प्राचीन धनी शहर जिसका नाम पहले नेकनामबाद था, एक महत्वपूर्ण मुसलमानी शहर था तथा विद्रोहियों की दृष्टि 'हरी झंडी' के लिए तथा आदेश के लिए हैदराबाद पर लगी रहती थी, जैसे भी हो ब्रितानियों ने एक चलित सेना खड़ी कर ली थी और स्थानीय रूप से प्रबंध करके एक पैदल सेना की टुकड़ी कडप्पा के लिए भेज दी थी। इलियट के अनुसार कडप्पा के आयुक्त से ज्ञात हुआ कि उन्होंने सभी की हवा ही पलट दी जो मनुष्यों को विद्रोह के लिए उकसा रहे थे। इस मामले में शेख़ पीर शाह ने कडप्पा में स्थित पलटन की नब्ज़ टटोली। ज्ञात विवरण से पता चलता है कि शेख़ कडप्पा से 20 मील दूर स्थित गाँव के थे। कभी वे अगस्त 1857 में कडप्पा गए थे, जहाँ वे एक दरगाह में ठहरे थे। वे शहर के बड़े तबके के लोगों से मिले, जैसे मुफ्ती सदरामिन, मौलवी सैयद, अब्दुल अजीज हुसैन तथा अन्य। तत्पश्चात् उन्होंने भारतीय अफसरों से तथा पलटन के हिन्दूओ तथा मुसलमानों से सम्पर्क साधना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने उन लोगों से ब्रिटिश राज की समाप्ति के विषय पर बातचीत की; उन्होंने हैदराबाद के निजाम की विलम्बिता की शिकायत की और आशा की कि निजाम शीघ्र ही कार्य करने लगेंगे।

28 अगस्त, 1857 को प्रात: कडप्पा के छावनी क्षेत्र में शेख पीर शाह ने सीधे ही सेना की सीमा के पास 30वीं स्थानीय पैदल सेना, मद्रास की टुकड़ी को उकसाना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने उनको बताया कि मोहर्रम के दिनों में, ब्रितानी सरकार का तख्ता पलट दिया जायेगा और मुगल शासन पुनर्स्थापित हो जायेगा। ब्रितानी सेना के बंदूकची हानि रहित हो जायेगें क्योंकि वे गोली नहीं चलायेंगे तथा ब्रितानियों ने कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी लगाकर हिन्दुओं को गाय का माँस खाने को कहा है और मुसलमानों को सूअर का ; जोकि दाँत से काट कर लगाने के लिये सिपाहियों को दिये गये है और इस प्रकार सभी व्यक्तियों को क्रिस्तानी आदि में परिवर्तित कर लिया जायेगा। (कडप्पा शेख पीर शाह का अभियोजन, ई. माल्टवी प्रमुख कार्यकारीं सरकार के मंत्री की ओर से, सेन्ट जॉॅर्ज किले से दिनाँक 1, अक्टूबर, 1857 ; एफ. एस. ए. पी. (ए) ग्र. 1 प्रपत्र 29 पृ. 161-164) शेख पीर शाह ने जमादार सहायक जघिया कि सूबेदार मेजर तो एक कीमती वस्तुओं का संग्रहालय था, जबकि सहायक सिपाहियों को आज्ञा भेजने का संचार माध्यम था।

इस प्रकार से सेना में विद्रोह चलाने का प्रयास सफल न हो सका। शेख जो कि प्रमुख षडयंत्रकारी थे, वे सितम्बर, 1859 में पकडे गए और उन्हेंे दस वर्ष का कठोर कारावास हुआ। कुछ सिपाही जिन्होंने शेख के क्रिया-कलापों की सूचना दी उन्हें कुल मिलाकर 200 रुपये इनाम के रूप में दिये गये।

उसी माह की 23 तारीख को सेना में राजद्रोह भडकाने के अपराध में कडप्पा के कृष्णामाचारी, पकडे गए और उन्हेंे चार वर्ष का कठोर कारावास दिया गया और चिंगलपुर जेल भेज दिया गया। ब्रिटिश सरकार ने पहली सितम्बर से दिसम्बर,1857 तक 80 से अधिक सिपाही भर्ती किये क्योंकि विद्रोहियों के सशस्त्र व्यक्ति अब भी सीमाओं पर घुमड़ रहे थे।

बंगाल सेना के विद्रोह में भाग लेने वाले जानखान को गिरफ़्तार कर करनूल जेल में कैद किया गया। दिसम्बर, 1862 में करनूल के मजिस्ट्रेट को उन्हें छोडने का अधिकार दे दिया गया। करनूल जिले में जून तथा जुलाई, 1857 में रोहिलाओं ने कुछ युद्ध जैसे क्रियाकलाप किये। इसके सिवाय वहां कोई गम्भीर दुर्घटना नहीं हुई ।

कारकुल शाह, आयु 50 वर्ष, फकीर कारकुल सतारा में देशद्रोही गतिविधियों के कारण कैद कर लिए गए और अक्टूबर, 1857 थाने जेल में भेज दिए गए। वह हयदाद अली शाह के शिष्य थे।

दिसम्बर, 1857 में नेलौर जिलाधीश तथा वहां तैनात नियंत्रक अधिकारी भयभीत हो गए कि ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध नेलौर जिले में गम्भीर विप्लव होगा तथा ब्रिटिश भारतीय सिपाही इसमें सम्मिलित हो जाएँगे। अत: सिपाहियों की एक बडी संख्या को गिरफ़्तार कर लिया गया। इस प्रकार अश्वारोही टुकडी तथा सिपाही, सेन्य विभाजन तथा अभ्यास वृद्धि के लिए रोक लिये गये। नेलौर के असंख्य निवासी गिरफ़्तार कर लिये गये तथा विप्लव की सम्भावना समय रहते हुये समाप्त कर दी गई।

प्रमुख नेता
शेख पीर शाह
(10 वर्ष का कठोर कारावास)

अन्य विशेष व्यक्ति
मुफ्ती सदराभिन
मौलवी सैयद अब्दुल अजीज हुसैन
जघिया जमादार

क़ैदी
शेख़ पीर शाह कृष्णामाचारी
जान खाँ कारकुल शाह

स्त्रोत
तमिलनाडु पुरा अभिलेखागार मद्रास
सरकारी क़िला सेंट जॉर्ज, मद्रास
न्यायिक प्रक्रिया, संपर्क
15-6-1857 ; 7-7-1857; 14-7-1857 ; 21-7-1857 ; 4-8-1847 ; 8-9-1857 ; 23-9-1857 ; 29-9-1857 ; 20-10-1857 ; 26-3-1857 ; 17-12-1862 ; 23-12-1862.
मुंबई पुरा-अभिलेखागार पी. डी.ग्र. 31, 1857 पृ. 245 एफ. एस. ए. पी. (ए) ग्र. 1. पृ. 147, 153, 161-164, 183, मद्रास प्रशासन रिपोर्ट 1857-58.

 

आंध्र के उत्तर समुद्र तटीय विप्लव
(गंजम, विशाखापट्टनम्)


फ़रवरी, 1857
1857 : पारला की मिदी में ब्रिटिश सरकार के विरोध में राधाकृष्ण डण्डसेन का हथियारबंद अम्भुदय। उनका ब्रिटिश सरकार के द्वारा पकड़ा जाना और फाँसी पर लटकाया जाना।
1857 : 28 फ़रवरी, प्रथम उत्तर - भारत -पलटन मद्रास, द्वारा विजनगरम् में विद्रोह।
1857 : विजनगरम् तथा अन्य स्थानों पर बाज़ारों में अन्न-विप्लव।
1857 : 21 जुलाई, विशाखापट्टनम् में ब्रिटिश-विरोधी तेलगू घोषणा पत्रों का पदापर्ण।
1858 :चिन्ना भूपति का विशाखापट्टनम क्षेत्र में उत्थान

1857 में तटीय आंध्र में उत्तर में गन्जम् से लेकर दक्षिण में नैलोर तक अनेक स्थानों पर ब्रिटिश विरोधी विप्लव हुए। स्थानीय लोगों की ब्रिटिश लोगो से परमपरागत रूप से मुठभेड़ और युद्ध होते रहते थे। राजा, ज़मींदार, पालिगर, सवारा के पहाड़ी सरदार, खोण्ड तथा इस क्षेत्र की अन्य जंगली जातियों ने फ़ौजी शक्ति तथा राजनैतिक शक्ति का प्रबन्ध किया ; तथा उन्होंने अपने क्षेत्र में सदैव ब्रिटिश अधिकारियों के आदेशों का उल्लंघन किया। गंजम में ही उन्होंने ईस्ट इंडिया कँपनी के आदेशों को भयंकर चुनौती दी।

इस प्रकार 1800-1801 में उनका ब्रिटिश विरोध सामान्य रूप से विप्लवकारी रूप में उठा और संघर्ष निरन्तर चलता रहा। बाद में 1835 ई. में ब्रिटिश सरकार ने दो महान कार्य खोण्ड के विपरीत संचालित किये और उन्हे पराजित करके शक्ति के बल से स्थापित हो गए। गंजम् की जमींदारी जब्त कर ली गई। भन्ज के परिवार के अनेक सदस्य, अन्य प्रमुख जमींदार पकड लिये गये और उन्हें निर्वासित कर दिया गया। अनेक नेता जो ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लडे, पकड लिये गये। बाद में उन्हें या तो फाँसी दे दी गई या देशनिकाला दिया गया।

विशाखापट्टनम् क्षेत्र में कुछ राजा और ज़मींदार थे जिनमें महाराजा विजय नगरम् प्रमुख थे। 2 अगस्त, 1793 ई. में ब्रिटिश फ़ौजों ने विजयनगर के किले को हथिया लिया था। पदमनाभम् स्थान पर विजयनगर के लोगों और ब्रिटिश फौजों में 10 जुलाई, 1794 को भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें राजा हार गये और मारे गये। इस स्थान पर अन्य 300 व्यक्तियों को भी जीवन से हाथ धोना पडा। 1832 ई. में काशीपुरम् के वीरभद्र राजू ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लडे। उपरोक्त ने काशीपुरम् शहर को जला दिया और राजा को मृत्युदंड दे दिया जो बाद नें उम्र-कैद में बदल दिया गया। अंकपल्ले और सत्यवरम् के जगन्ननाथ राजू, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार को युद्ध में ललकारा था अन्त में पकड लिए गए और ब्रितानियों ने उन्हें 1834 में फाँसी दे दी। इसी प्रकार पालकोन्दा के जमींदार 1833 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लडे एवं विफल रहे, जबकि अन्य बहुत से व्यक्तियों पर मुकदमा चलाया गया और मृत्यु दंड दे दिया गया। इसी प्रकार से पहाडी जातियों के लोगों ने अपने राजा चिन्ना भूपति के नेतृत्व में 1845 से 1848 तक उनके उपनिवेश के विरुद्ध चुनौती दी और विप्लव के लिए हथियार भी उठा लिये। राधाकृष्ण डण्डसेन, गेवा के प्रलाकमिदी में ब्रितानियों के प्रधान के विरुद्ध 1856-57 ई. में लडे और बाद में पकडे गये और ब्रिटिश सरकार के द्वारा 1857 ई.. में उन्हें फाँसी पर चढा दिया गया।

विभिन्न समयों में ब्रिटिश सरकार के विरोध में अन्य जिलों में भी जैसे गोदावरी, कृष्ण, गन्टूर, रायल सीमा क्षेत्र आदि में विप्लव हुए।

आन्ध्र के लगभग सभी जिलों में राजाओं, तथा पालिगरों के ब्रिटिश विरोधी विप्लव की कहानी स्पष्टत: यह बतलाती है कि जब ब्रितानी अपना आधिपत्य जमा रहे थे तो उन्हें स्थानीय सामन्तों और निवासियों का सामना करना पडा। देखा यह गया है कि ब्रितानी सरकार का अवरोध आमतौर पर 'सामन्तों' से और ग्रामीण 'प्रतिकारी' तत्वों से ही हुआ। उस काल में जैसी स्थिति निर्मित थी, उन्हीं के अनुरूप नेतृत्व आगे आया और ब्रितानियों के प्रति कोई शक्तिशाली विरोध सम्भव न हुआ। बाद में ब्रिटिश विरोध अधिकांशत: मध्यम वर्ग से ही सामने आया। यह किसी भी प्रकार से,उस काल के इतिहास में राज्य विरोध का प्रतिकार करने वाले तत्वों की महत्ता को कम नहीं कर पाया।

गन्जम्

1857 में पारलक मिदी के सवारा क्षेत्र में उपद्रव हुए तथा राधाकृष्ण डण्डसेन, गैवा क्षेत्र के प्रमुख और सवारा के प्रमुख नेता, ब्रितानियों के विरुद्ध हथियारबंद हो गये। इनके विरुद्ध कैप्टन विल्सन के नेतृत्व में, ब्रिटिश दल सवारा क्षेत्र में बढा। अन्त में, डण्डसेन को पकड लिया गया और उन्हें फाँसी पर चढा दिया गया। डण्डसेन के श्वसुर और एक प्रमुख अनुयायी को भी फाँसी पर लटका दिया गया। डण्डसेन के अनुयाइयों को 1857 के अन्त में और 1858 के प्रारंम्भ में विभिन्न सजायें दी गई तथा इन्हें कई सुदूर जेलों में भेज दिया गया। प्रमुख कैदियों में से दो चित्तूर जेल, दो कण्डलोर जेल, दो कुम्भागैनम जेल, दो सलेम जेल और शेष दोे त्रिचनापली जेल भेज दिए गए। पारलक मिदी के चार कैदियों को बेलरी जेल भेजा गया।

जुलाई 1857 में 34वीं स्थानीय पैदल सेना के प्रतिबन्धित सिपाहियों गंगादीन, बालकिशन तथा शिवसदा, जिन्होंने गन्जम जिले में प्रवेश किया था उनके शंकालू चरित्र के कारण ब्रिटिश सरकार के द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया।

प्रमुख नेता
राधाकृष्ण डण्डसेन

अन्य विशेष व्यक्ति
राधाकृष्ण डण्डसेन के श्वसुर

शहीद
राधाकृष्ण डण्डसेन
(सवारा गाँव में फाँसी पर चढाया गया, 1857)
राधाकृष्ण डण्डसेन के श्वसुर
(1857 को सवारा गाँव में फाँसी पर चढाया गया।)

कैदी
पारलक मिदी के निम्नलिखित व्यक्ति, क्रांति में सहायता के आरोप में 20 नवम्बर, 1857 के वारंट के द्वारा बैलारी जेल मेंकैद किए गए।

जोगी डोरासेयली वैरागी डोर
लूटचिया डोरानीलंबरा डोरा

गंजम के निम्नलिखित व्यक्ति 'विद्रोह' के आरोप में 1857-58 ई. के अशांति काल में, 24 फ़रवरी, 1858 को वारंट द्वारा त्रिचनापल्ली जेल में कैद किये गये।

गंगाधर उर्फ पोलाव वेरा डोलये
(21 वर्ष का कठोर कारावास)
पुत्ता कोलो उर्फ नटचारू महालिंगम
(7 वर्ष का कठोर कारावास)

विशाखापट्टनम्

28 फ़रवरी 1857 को विजयनगरम की स्थानीय पैदल सिपाहियों की पलटन को जब कर्नूल कूंच करने की आज्ञा दी गई तो उन्होंने इस आधार पर इन्कार कर दिया कि उनके परिवारों को उनके साथ चलने के लिये गाडियाँ नहीं दी गई। यहाँ, यह ध्यान दिया जा सकता है, कि यह गम्भीर घटना विजयनगरम् में मई 1857 में सामान्य स्वतन्त्रता आन्दोलन से ठीक पहले घटित हुई थी भी ध्यान दिया जा सकता है कि उत्तरी भारत में बहरामपुर में केवल दो दिन पूर्व 26 फ़रवरी 1857 को 19व़ीं स्थानीय पैदल सिपाहियों की पलटन ने खुलेआम विद्रोह कर दिया। इससे भी पहले 22 जनवरी, 1857 ई. को भारतीय सिपाहियों ने दमदम आयुध-शैक्षणिक विभाग में ग्रीस लगे कारतूसों को खोलने पर अपनी तकलीफ व्यक्त की थी। यह काल ब्रिटिश फौज व सरकार के लिये बडा ही छानबीन करने वाला था। यद्यपि, स्पष्ट रूप से विजयनगरम् विद्रोह का उत्तर भारत के फौजी विद्रोह से कोई सीधा संबंध नही था; फिर भी इसने किसी भी प्रकार से इसने सिपाहियों की अवज्ञापूर्ण मनोदशा में एक संकेतक का कार्य किया,चाहे यह उत्तर अथवा दक्षिण में हुआ।

उप समादेशक अधिकारी (डिप्टी कमान्डिंग अफसर) विजयनगर उत्तर क्षेत्र के महा सहायक वाल्टेयर को लिखते हुए (पत्र सं. 169 दिनाँक 28 फ़रवरी, 1857 का)े निरूपित किया : मैं यह मानता हूँ कि जो कुछ आज प्रात: हुआ वह पूर्व नियोजित प्रबन्ध था और जो यह अप्रियता कोर के द्वारा दर्शाई गई है वह किसी व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं है बल्कि आमतौर पर सभी का इसमें पूर्ण सहयोग है।..... कोर का जो यह 'गदर पूर्ण' चरित्र है, वह मेरी राय में यह आवश्यकता बतलाता है कि एक उदाहरण और यदि सम्भव हो सके तो शीघ्रतम, कुछ व्यक्तियों पर अपनाया जाना चाहिए। (एफ. ए. एस. पी. (ए) ग्र. स. 1 डोक स. 16 पृ. 141-143)। सहायक महासहायक पूर्णत: इस प्रस्ताव से सहमत हैं। विजयनगरम के विद्रोह ने किसी भी प्रकार से इस प्रकार की कोई भी घटना नहीं होने दी।

 

जुलाई, 1857 में विजयनगरम के बाज़ारों में और अन्य स्थानों जैसे अलीपुर, बंगलोर आदि में अन्न-विद्रोह हुआ। इन दंगों के कारणों का विश्लेषण करते हुए मद्रास सरकार ने यह माना: कि दो परिस्थितियों ने दुर्भाग्य से उन लोगों के कार्य को सरल बना दिया जो असन्तोष एवं घृणा फैलाना चाहते थे। अर्थव्यवस्था ने सरकार के जनकार्य को रोककर अनुग्रह उपकार किया और इस उद्देश्य से 17 जुलाई को आदेश निकाले, एक ही समय में बहुत बडी संख्या में मनुष्यों की सेवाएँ समाप्त कर दी गई क्योंकि वर्षा की आशंका तथा बाहर से अन्न मँगाना आमतौर पर बहुत महँगा था। इस कमी का लाभ उठाते हुए चतुर लोंगों ने दूर-दूर तक अफवाह फैलाई कि सरकार की इसमें भेदपूर्ण नीति है और इस प्रकार जन असंतोष में वृद्धि की जिसे तुरन्त कुछ स्थानों पर अन्न-विवाद से हवा मिल गई जैसे विजयनगर बंगलौर आदि। [प्रान्तीय स्थिति तथा 1857 का ऐक्ट 14-मद्रास, न्यायिक विभाग-सरकारी विज्ञप्ति 1981-ए-3 सितम्बर 1857 एफ. एस. ए. पी. (ए) ग्र. 1, पृ. 147-148 ] 'चतुर व्यक्ति' जिनका सन्दर्भ ऊपर है, कोई भी अन्य नहीं हो सकते, अपेक्षाकृत उनके जिन्होंने हर स्थान पर ब्रितानियों के विरुद्ध विप्लव संगठन का प्रयास किया।

अगस्त 1857 के दूसरे सप्ताह में, विशाखापट्टनम की दीवारों पर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध तेलगू में विज्ञापन-पत्र प्रदर्शित हुए जो निम्न प्रकार (हिन्दी अनुवाद) पढे जाते थे: दिल्ली के सम्राट की आज्ञानुसार, मोहम्मद के अनुयाई 21 जुलाई, 1857 (अंग्रेजी तारीख) को विजयनगरम के धनी निवासियों को जो ईस्ट इंडिया कंपनी से जुडे हैं खुलेआम सूचना दी जाती है कि उपरोक्त कंपनी ने जो दिल्ली में बादशाह की तावेदार रही है, सम्पूर्ण देश को वशीभूत करने की नीयत से, अनेक अन्यायपूर्ण कार्य किये हैं और इन खतरों के फलस्वरूप स्वयं को शासनाधीन बनाया, उनकों देश छोडने में तनिक भी संदेह नहीं हैं...... अरे लोगों, तुम हमारे हो, यदि इस आशातीत युद्ध में पिछड गये तो, कोई शंका भी नही है कि तुम्हारे सम्मानीय परिवार वालों का भी नाम शेष नहीं रहेगा।...... इसी विषय पर गौदेय नारायन गजपति राव ने इस देश के ऐश्वर्य संपन्न धनी सावकर को पत्र लिखें हैं, परन्तु उसका कोई लाभ नहीं हुआ। आप सब लोगो को यह स्पष्ट हो जायेगा कि कुछ ही दिनों में मोहम्मद के समस्त अनुयायी उनको सबक सिखायेंगें। हम मोहम्मद साहब के बचे हुए कम्पनी क्षेत्रों के सेवारत लोग बादशाह की सहायता से कुछ शहरों को नष्ट कर डालेंगे।

 

यहाँ वृहद् रूप से वर्णित किये गये तेलूग भाषा के उपरोक्त विज्ञापन-पत्रों के निष्कर्षों से, दो बातें स्पष्ट होती है: एक कि विशाखापटनम के विप्लव अन्न-विद्रोह को मिलाकर ये राष्ट्रीय स्वतंत्रता युद्ध के भाग थे और दूसरी कि दिल्ली से सम्पर्क होने के कारण विशाखापटनम के मुसलमानों ने विप्लव को संघटित करने में भाग लिया और यह कि वे अपने स्थानीय हिन्दू भाइयों से सहायता की माँग कर रहे थे।

 

इस संदर्भ में ब्राह्य तत्व, क्रांतिकारियों के गुप्तचर आदि विशाखापट्टनम आते थे जिनमें से कुछ को ब्रिटिश सरकार ने शंकालु चरित्र का होने के कारण कैद कर लिया था। विशाखापट्टनम में मद्रास के राज्यपाल के प्रतिनिधि से पूछा गया कि दिसम्बर 1857 में कितने बाहरी व्यक्ति जिले में आये और उनमें से कितनों ने अपने विषय में क्या विवरण दिये। (मद्रास, सेन्ट जार्ज किला, न्यायिक प्रक्रिया, सम्पर्क सं. 30-31 दिनाँक 23-12-1857) विशाखापट्टनम जिले के नरशपटनम क्षेत्र में पहाडी जातियाँ ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध 1857 में उठ खडी हुई। किसी भी रूप से उनका बलवा तुरन्त और कठोर तरीकों से दबा दिया गया।

चिन्ना भूपति और उनके भतीजे सन्यासी भूपति के नेतृत्व में 1858 में गोलकुण्डा क्षेत्र में ब्रिटिश-विरोधी गम्भीर विप्लव हुआ। अन्तत: ब्रिटिश लोगों ने इसे दबा दिया। चिन्ना और अन्य तेरह दूसरे नेता पकड लिये गये और उनकों आजीवन निर्वासन और जेल की सजा हुई। बाद मे उनमें से तीन राजनीतिक अपराधियों को क्षमादान के आधार पर छोड दिया गया और इनको जहाज में भरकर अंडमान भेजा गया। इसी मध्य मई, 1859 में उनमें से सशीना सोमनाथ पादल नाम के क्रान्तिकारी शहीद हो गए। जबकि भारत के अन्य भागों में युद्ध की गम्भीरता समाप्ति की ओर थी, चिन्ता के निर्वसन की सजा भी दिसम्बर 1859 में क्षमा कर दी गई और विशाखापटनम में ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि के द्वारा अन्य अभियोगों की प्रक्रियाएँ भी पुनरीक्षित की जा रहीं थीं। यहाँ यह भी ध्यान किया जाना चाहिये कि कठिनाइयों के दौरान ब्रिटिश सरकार इतनी निराश शंकालु बन गई थी कि जुलाई 1858 में, विशाखापट्टनम के मजिस्ट्रेट ने पाँच डाकखानो के चपरासियों को कैद की सजा सुना दी और उनमें से दो को सात वर्ष की सजा, प्रत्येक को मसक्कत कठोर कारावास, डाक न देने और पत्रों का अनुचित प्रयोग न करने आदि दण्ड दिए गए। युद्ध काल में यह गैर पारम्परिक कठोर कारावास, उदाहरण स्थापित करने के लिये दिया गया था।

 

प्रमुख नेता
चिन्नाभूपति व संयासी भूपति

 

शहीद
सगीना सोमनाथ पादल
(आजीवन कारावास, अंडमान भेजे जाने से पूर्व मई,1859 में कैद में ही मृत्यु)

 

कैदी
चिन्ना भूपति सन्यासी भूपति
तथा 11 अन्य को जीवन भर का कारावास, उनकी कैद, किसी प्रकार से दिसम्बर 12859 में कम हुई, उनमें से एक व्यक्ति, सगीना सोमनाथ पादल मई, 1959 में शहीद हो गए।

स्त्रोत

तमिलनाडु पुरां अभिलेखागार, मद्रास
सेन्ट जार्ज किला सरकार, मद्रास, न्यायिक प्रक्रिया:
सूत्र साधन

गंजम: 4-8-1857; 19-1-1858 ; 26-3-1861; 13-7-1861.
विशाखापटनम: 19-8-1857; 25-8-1857; 3-9-1857; 23-12-1857; 25-2-1859; 31-5-1859; 31-12-1859.       

मद्रास प्रशासनिक रपट: 1857-58, 1858-59 ई.   
(गंजम विशाखापट्टनम)
एफ. एस. ए. पी. (ए) ग्र. 1. गंजम: पृ. 22, 24, 59, 147, 182,
विशाखापटनम: पृ. 147-148, 165, 196.
गंजम जिला संक्षिप्त विवरणिका: पृ.. 126, 195, 196.
विशाखापट्टनम जिला गजेटियर गृ. 1, पृ. 46-54, 287, 289, 304, 312, 313, 317, 318.       

 

नारखेड (हैदराबाद) के रंगो राव पागे के क्रिया - कलाप


फरवरी, 1857
1857 : फरवरी, दक्षिण भारत में युद्ध के संबंध में सोना जी पंडित का एक पत्र के द्वारा नाना साहब पेशवा को संबोधन।
1858 : अप्रैल, 18 नाना साहब पेशवा द्वारा दक्षिण के लोगों के नाम पत्र व घोषणा जारी : रंगोराव पागे उन्हें हैदराबाद लाते है और अपना कार्य प्रारम्भ कर देते है।
1859 : अप्रैल, पागे की गिरफ़्तारी, मुकदमा और अंडमान के लिये निर्वासित।

वहावी आंदोलन 1857 के विप्लव का एक उपक्रम था। इसे मुसलमानों के एक पंथ के द्वारा चलाया गया था। इसका नेतृत्व नेज्द के सउदी अरब के एक निवासी अब्दुल बहाव ने किया था। उन्हीं के नाम से इस आंदोलन का नाम वहावी आंदोलन पडा। यह तुरन्त बहुत सारे देशों में प्रारम्भ हो गया। भारत में पटना में सैयद अहमद ब्रेलवी के नेतृत्व में यह ब्रिटिश विरोध का एक शक्तिशाली आंदोलन बन गया। 1831 में सैयद अहमद की मृत्यु के पश्चात् उनके अनुयाइयों ने ब्रिटिश विरोध जारी रखा तथा इनमें से दो विलायत अली व सलीम 1838 में आंदोलन को गति प्रदान करने के लिये दक्षिण आये। इस आंदोलन के कट्टर प्रचारक कर्नूल के अन्तिम नवाब गुलाम रसूल खाँ, की ब्रिटिश फौजों से 1839 में जोहरपुर में एक मुडभेड हो गई; नवाब को गिरफ़्तार कर लिया गया और उनका राज्य क्षेत्र मद्रास-प्रदेश को सौंप दिया गया।

हैदराबाद में नवाब मुवारिज व नाशिर उद्दौला ने वहावी आंदोलन के लिये ब्रिटिश विरोध किया एवं प्रमुख भूमिका का निर्वहन किया। वह निजाम नाशिर-उद्दौला के छोटे भाई थे। अतः शाही परिवार में उनका विशेष सम्मान था। बाद में हैदराबाद-ब्रिटिश राज्य-प्रतिनिधि के इशारे पर उनको गिरफ्तार कर लिया गया, तथा उनके द्वारा मेजर आर्मर्स्ट्रौग के अन्तर्गत एक विशेष अदालत का गठन हुआ। 28 जून, 1839 को न्यायाधिकरण ने ब्रिटिश शासन तथा निजाम के प्रति षडयन्त्र का तथा सिकन्दरबाद में तैनात, ईस्ट इंडिया कम्पनी की फौज के सिपाहियों को बागी बनाने और भारत के कुछ राजकुमारों के साथ पत्र व्यवहार में इनको संलग्न पाया। मुवारिजददौल्लाह को 1940 में गोलकुन्डा के किले में भेज दिया गया। वह राजकीय कैदी के रूप में 14 वर्ष तक वहां रहे और 25 जून, 1854 को किले में ही उनकी मृत्यु हो गई।

वहावी आंदोलन के कारण हैदराबाद राज्य में पहले से ही ब्रिटिश-विरोधी भावनायें विद्यमान थीं। जब मई 1837 में उत्तर भारत में स्वतंत्रता संग्राम प्रारम्भ हुआ, लगभग एक माह में 12 जून को औरंगाबाद में तैनात प्रथम हैदराबाद अश्वरोही सैन्यदल ने विद्रोह कर दिया। दूसरे माह, 17 जुलाई को हैदराबाद में कस्बे के लोगों के द्वारा ब्रिटिश प्रतिनिधि निवास पर हमला हुआ। ये स्वत: प्रस्फुटित विप्लव थे। अगले वर्ष 1858-59 के युद्ध-प्रयत्नों से हैदराबाद से संलग्नता के लिये साहसिक तथा भारी प्रयास हुये और इन सब में हैदराबाद के व्यक्तियों द्वारा स्वमेव अन्तर्प्रयत्न हुये।

1857 में और उसके बाद भी, दक्षिण भारत में हैदराबाद में विशालकाय विरोध-विप्लव योजनाबद्ध रूप से हुये। रंगाराव रत्नाकर, नारखेद के पटवारी, जमींदार अथवा कोवलास के राजा, राजा दीप सिंह, निजाम हैदराबाद के दरबार में एक मराठा सरदार राव रम्भा निम्वालकर के पुत्र, सफदर-उद्दौला, निजाम के क्षेत्र में ब्रिटिश-विरोधी विप्लव में प्रमुख संघटक थे। विभिन्न स्थानों पर स्थानीय नेता भी थे, जिन्होंने सेना की भर्ती के लिये, शस्त्रों के संग्रहीकरण के लिये, गुप्तचर भेजने के लिये संगठन के कार्य किये। स्थानीय नेताओं का, राष्ट्रीय स्तर के नेताओं, जैसे नाना साहब पेशवा तथा तांत्या टोपे से संचार-सम्पर्क था। ब्रिटिश अधिकारियों ने सोचा कि 1857 के युद्ध में राजनैतिक तथा सामरिक भूगोल में निजाम के क्षेत्र में स्थिति रखते थे जैसा कि उस समय सरकारी रुप से माना गया, "यदि निजाम का राज्य चला गया तो कन्याकुमारी तक प्रायद्वीप ही चला गया। दक्षिण भारत के लिये हैदराबाद वैसा ही था, जैसा कि उतर भारत के लिये दिल्ली। सभी इस क्षेत्र में निजाम और उसकी राजधानी की ओर देखते थे तथापि यहां जनसाधारण का राज-विद्रोह सम्पूर्ण मद्रास राज्य से नागपुर तक जंगली आग के फैलने समान होगा। ब्रिटिश प्रतिनिधि कर्नल डेविडसन, प्रशासनिक रपट 1858-59 ; विग्रा पृ. सं. 88 हैदराबाद और निर्धारित जिलों की निजाम, नासिर-उद्दौला 16 मई, 1857 को मर गए। उनके ज्येष्ठ पुत्र अफजल-उ-द्दौला सालार जंग तथा सम्स-उल-उमरा के द्वारा मसनद नसीन हुए। अफजल-उ-द्दौला कठोर परिस्थितियों में गद्दी पर बैठे। ब्रिटिश शासन के द्वारा यह भय पोषित किया गया कि, हैदराबाद में विद्रोही वर्ग वृन्द तथा निजाम और उसके मंत्रियों का जिस प्रकार ऊपरी हाथ चल रहा है, सम्पूर्ण दक्षिणी भारत और सम्भवतः साथ में मुंबई भी विद्रोह न कर दे.... यह ज्ञात हुआ कि नगर में राजद्रोह कार्यरत है और निजाम के कुछ अधिक प्रमत परामर्शदाता उससे यह प्रार्थना कर रहे थे कि विप्लवकारियों का साथ निभायें।

भारतीय नेता भी हैदराबाद में युद्ध की सामरिक कूटनीति के महत्तव से समान रूप से परिचित थे। शीघ्रातिशीघ्र फरवरी, 1857 में सोनाजी पंडित ने राजा रवि राय की जमींदारी में एक सरदार नाना साहब पेशवा कानपुर के नाम स्वतंत्रता संग्राम के दक्षिण भारत में संगठन के सम्बन्ध में एक पत्र प्रेषित किया। सोना जी पंडित तब हैदराबाद से निर्वासित होकर जागीर के एक गाँव में रह रहे थे। उन्होंने अपना पत्र रंगो राव पागे को सौंप दिया, जिन्होने पत्र को पगोटा-पगड़ी में छिपाकर कानपुर के लिये प्रस्थान किया और पत्र को नाना साहब को पहुँचा दिया और लौटते समय उनसे, दक्षिण की आम जनता, प्रमुख व्यक्तियों के लिये घोषणा एवं निर्देश ब्रिटिश शासन शक्ति के विरुद्ध जागृत होने के लिये भेजे, ऐसा एक घोषणापत्र मराठी भाषा में दिनाँक रमजान की तारीख 4 रविवार-वैशाखी शुद्ध पंचमी शक 1780 (18 अप्रैल, 1858), जो निम्न प्रकार व्यक्त किया गया।

पारवाना सरकार श्रीमंत। महाराज पंतप्रधान पेशवा बहादुर। दक्षिण प्रांतालील जिन्हें सोलापुर व जिल्हे नगर प्रांतीलील रईस देशमुख देश पांडे व राजे वगाजी पाटील व कुलकर्णी वगैरे व सर्व शिपाई आफसरान सर्वत्र लोकास जाहीर व्हावे की इकडे हिन्दुस्तानात सर्वत्र हिन्दू व मुसलमान लोकांनी दीनसाठी विघड़न इंग्रेज लोक व्यास परागंदा करणेचा इरादा करुन सर्व ठिकाडाव्या छावण्यतील साहब लोक मारुन टाकीले आणि व्या जिल्हयात अधापि दीनांत सामिल जाहेल नाही व्यावरुन तुम्हास लिहिले जाते की चेथून राजश्री रंगराव रत्नाकर पागे नरखेडकर व सोनाजी पंत विज। हैदराबाद वाले का उभयतास तेथील वेदोवस्तावी योजना करुन लिहिले जाते तरी सर्वत्रांनी दीनाकडे ख्याल करुत अंग्रेज लोक यांचा नाश करावा यांत हिन्दु-मुसलमान यांसी दीन राहील व जे कोणी पुढे होऊन काम करील व्याचे हक्कात बहुत चांगले होईल आणि इनामाहि दिले जाईल।

छ: माहे रमजान वैशाख शु ||5 रोज रविवार शके 1780छ (आंध्र प्रदेश राज्य ग्रन्थ पुरा अभिलेखागार, स्वतंत्रता संग्राम नत्थी; तथा पगडी, प्रतिष्ठान, मई, 1955 पृ. सं. 17-18)

(देशमुखों, देशपान्डे, पटेलों, कुलकर्णियों आदि के प्रति तथा सिपाहियों, अफसरों तथा आम जनता, दक्षिण निवासी जिला सोलापुर, नगर (आदि) आपको ज्ञात हो कि उत्तर भारत में हिन्दू तथा मुसलमान ने, अपनी धर्म आस्था के विपरीत, ब्रिटिश सरकार के विरोध में विद्रोह किया और इस देश को छोडने के कारण हर स्थान पर ब्रितानियों को उनके फौजी शिविरों में मार डाला। इस प्रकार विद्रोह आपके जिले में होने वाला है। अत: निकट ही, यह आदेशित किया जाता है कि नरखडे के रत्नाकर पागे और हैदराबाद के सोना जी पंत को यह उत्तरदायित्व सौंपा जाता है कि वे उन क्षेत्रों का प्रभावशाली प्रतिभाशाली संगठन करें। अत: आपको अपने धर्म विश्वास के आधार पर निर्देशित किया जाता है आप ब्रितानियों को, जहाँ कही मिलें, समाप्त कर दे। जो इस भले कार्य के लिए आगे आयेंगे, वे उचित रूप से पुरस्कृत होंग़े) शान्ताजी राव नायक के कथन से जो उन्होंने बाद में दरबार में प्रस्तुत किया, ज्ञात होता है कि नाना साहब पेशवा का दक्षिण में 5,000 अश्वारोही, सैनिक, 10,000 पैदल सैनिकों की तत्काल फौज खडी करने का उद्देश्य था।

सोना जी पंडित का 26 फरवरी, 1859 को स्वर्गवास हो गया। अत: रंगाराव का उत्तर से लौटेने के पश्चात् हैदराबाद पदापर्ण हुआ। तत्पश्चात् वे नानदेड जिले के कोरलाओं के राजा दीपसिंह से मिले। वहाँ से, उनके द्वारा उस क्षेत्र के अनेक व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापित किये गये। वे निम्बालकर परिवार के सफदर-उद्द-द्दौला से भी मिले। इसके परिणामस्वरुप सफदर-उ-द्दौला ने शेख मदार व विभिन्न जमादारों को सम्बोधित पत्र दिये। सफदर-उद्-द्दोला ने स्वयं लगभग 25 हजार हवाई (नभ-प्रक्षेपास्त्र) युद्ध सामग्री के रूप में एकत्रित किये। वह सिपाहियों की आवश्यकतानुकूल भर्ती की तैयारी कर रहे थे। हल्ली के पुत्रों एवं पिता, जयराम पटेल, तथा बाबू पटेल (पुत्र) ने रोहिले सिपाहियों को आश्रय दिया। हैदराबाद, सैन्य-दल के कैप्टन मरे ने उन पर आक्रमण कर दिया, उसने बाबू पटेल को हल्ली से 2 मील दूर गाँव में गिरफ्तार कर लिया। हल्ली में ब्रिटिश शासन ने कोवलाओं के राजा सफदर-उद्-उद्दौला को उनके दो पटेलों सहित रंगाराव पांगे के मूल परस्पर-पत्र व्यवहार सहित पकड़ लिया।

रंगोराव के प्रयत्न अधिक सफल नहीं हुये। उन्हें ब्रिटिश शासन के द्वारा अम्बालगा में गिरफ्तार कर लिया गया तथा नाना साहब पेशवा के निर्देशानुसार फौज खड़ी करने के प्रयास और राजद्रोह के अभियोजन पर हैदराबाद उच्च न्यायालय में उन पर अभियोग चला, व अप्रैल, 1859 में उन्हें मृत्युदण्ड दिया गया। तथापि बाद में दण्ड ब्रिटिश शासन गर्वनर जनरल के द्वारा काला पानी में बदल दिया गया। रंगोराव को तुरन्त ही अण्डमान के लिए निर्वासित कर दिया गया जहाँ वे 1860 में मृत्यु को प्राप्त हुये।

राजा दीप सिंह, सफदर-उद्द-द्दौला तथा अन्य पर हैदराबाद न्यायालय में अभियोग चला। राजा दीप सिंह को तीन वर्ष का कारावास हुआ और उनसे जागीर छीन ली गई। सफदरउद्द-द्दौला की चल तथा अचल सम्पत्ति जब्त कर ली गई और आजीवन कारावास हुआ। रघुनाथ राव की सम्पत्ति जब्त कर ली गई और तीन वर्ष का कारावास हुआ। जयराम तथा बाबू पटेल को नौकरी से निकाल दिया गया और प्रत्येक को तीन वर्ष का कारावास हुआ। काशीराम को बेडियों सहित 5 वर्ष का कारावास हुआ। इस प्रकार निजाम के क्षेत्र में 1857 के युद्ध सम्बन्धी निष्फल संघटक प्रयासों का अन्त हुआ।

प्रमुख नेता
रंगाराव रत्नाकार पांगे पटवारी, ग्राम नारखेड फरवरी, 1857 को रंगाराव सोना जी का एक पत्र, लखनऊ के पश्चिम में 40 मील दूर वेर बथौड़ा गाँव में नाना साहब पेशवा के पास गया। रंगाराव नाना साहब का उत्तर तथा एक सीलबन्द लिफाफा सोनाजी पंडित के पास ले गये जिसमें नाना साहब की घोषणा और स्वतंत्रता ध्वजारोहण और प्रत्येक स्थान पर ब्रिटिश शासन विरोधी विप्लव चालन के आदेश थे। रंगाराव, सफर-उद्-द्दौला, राव रम्भा निवांलकर, गुलाब खाँ तथा बंजुरी के नाम नाना साहब के व्यक्तिगत पत्र ले गये। प्रसंगवश, वे ये पत्र और अन्य दस्तावेज, घोषणा आदि से परिपूर्ण चुपचाप हजामत बनाने वाले शीशे, जो आकृति में गोल थे, के पीछे छिपाकर ले गये। उस समय तक जब रंगाराव, सोनाजी के पैतृक गाँव पहुँचे, सोनाजी का देहान्त हो चुका था। रंगाराव हैदराबाद चले गये। मार्ग में, माधवपुरा में उन्होंने नाना साहब के आदेश, उस गाँव के नायक को दिखलाये। माधवपुर से बाबू पटेल के साथ वह दिल्ली गये और बाबू के पिता जयराम पटेल से मिले। हल्ली से रंगाराव चिखाली गये और गाँव के पटेल आनन्द राव से मिले। चिखाली से वह कोवला गये तथा वहाँ 'हकीम' की शैली में ठहरे जो कि चिकित्सक होते हैं। वहाँ उन्होंने कोवलाओ के राजा दीपसिंह के साथ बैठकें कीं तथा विप्लव की योजना और नाना साहब के आदेश पर विचार-विमर्श किया। रंगाराव जोशी पुजारी के घर में रहे और वहाँ रामेश्वर राव, विठ्टलराव कुलकर्णी, यशवन्त राव दाजी कुलकर्णी, बख्तावर सिंह से मिले और 2,000 व्यक्तियों की फौज खडी करने की योजना पर विचार किया। व्यय-वहन के लिये उन्हें कोलाओं के राजा से कुछ धन भी प्राप्त हुआ। राजा ने काशीराम की रिसालदार के रूप में 2,000 व्यक्तियों की फौज खड़ी करने के लिये नियुक्ति की गई जिससें अरबी, रोहिलों तथा दिक्खिनी हों। फौज खडी करने के उद्देश्य से धन उपलब्ध कराने के लिये, रंगाराव ने बसन्तराव से एक अनुबन्ध पत्र लिखवाया। कौला से रंगाराव पल्कल गाँव गये, जहाँ वे लियाकत अली की जागीर के पटवारी मोतीराम और रामेश्वर राव से मिले। अली ने सभी से परामर्श लिया। रंगाराव पुन: कौला लौट आये और उन्होंने राजा से चार बार भेंट की। तत्पश्चात् वे निलीवार पहुँचे और रघुनाथ दाजी तथा वन्दे अली पटेल से भेंट की। वहाँ से वे मानिक नगर पहुँचे और मानिक प्रभु से मिले। वहाँ से रंगाराव निलीवार गाँव पहुँचे और वन्दे अली पटेल से एक बार पुन: भेंट की। निलीवार से रंगाराव अम्बालगा की ओर बढे और मार्ग में उभरगा में रुके, जहाँ वे उभरगा के महाराज से मिले। इस अवधि में रंगाराव ने, पगड़ी के नायक सेवर गाँव, वस्तोली, होमिनाबाद आदि के नायकों से भेंट की। होमिनाबाद ऐसा केन्द्र था जहाँ औरंगाबाद, नालदुर्ग आदि में विद्रोहियों ने प्रश्रय लिया था।

रंगाराव पागे के इस प्रकार के निरन्तर तथा अकथनीय क्रिया-कलाप थे जिन्हें उन्होंने महान जोश के साथ, दक्षिण भारत में स्वतंत्रता आंदोलन की योजना करके तथा संगति करने पेशवा नाना साहब के पत्रों के अनुकूल निभाया। वे अम्बालगा की सरहद (सीमा क्षेत्र) में पहुँचे ही होंगे कि ब्रिटिश फौज के अश्वारोही सैनिकों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उनकी क्षयात्मक यात्राओं तथा सम्पर्कों के मध्य रंगाराव ने विश्वासपूर्वक अन्य व्यक्तियों के साथ पत्र व्यवहार बनाये रखा। उनकी गिरफ्तारी के पश्चात् उन्हें हैदराबाद ले जाया गया। अप्रैल 1859 में, कैप्टन बुलक ने उन पर अभियोग चलाया और जीवन भर के लिये देश निकाला दे दिया गया, वे शीघ्र ही अण्डमान निर्वासित कर दिये गये, जहाँ वे 1860 में मृत्यु को प्राप्त हुये।

सफ्दर-उद्-द्दौला
सफदर-उद्-द्दौला निम्बालकर परिवार से सम्बन्धित थे। वे जिलेदार नियुक्त हुये थे। उनका दौलत राव शिन्डेे, ग्वालियर के महाराज तथा 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के महत्वशाली नेता की विधवा वैजावाई से पत्र व्यवहार था। ब्रिटिश विरोध स्वरूप विप्लव, सिपाहियों की भर्ती से सम्बन्धित नेताओं और प्रतिनिधियों से भी उनका पत्र-व्यवहार रहा। इस प्रकार, कल्हन खाँ तक सिपाहियों की भर्ती सूचीबद्ध करने के लिये पहुँच गई। हैदराबाद उच्च-न्यायालय के समक्ष दिये गये बयान से गिरफ्तारी के बाद वे दोषारोपित हुये। सफदर-उद्-द्दौला ने निश्चित रूप से यह प्रतिपादित किया कि उन्होंने स्वयं ही ऐच्छिक रूप से आंदोलन में भाग लिया और स्वमेव ही उसके लिये कार्य तथा नेतृत्व किया। उन्हें आजीवन कारावास हुआ और उनकी अचल सम्पत्ति जब्त कर ली गई।

दीपसिंह, कौलाओं के राजा
कौलाओ के राजा ने रंगाराव पागे के साथ योजनाओं पर विचार-विमर्श किया, जिसके लिये उन्होंने जयराम भाट, जोशी पुजारी के घर अपने वृद्ध सेवक करंगी के द्वारा निवास का प्रबन्ध किया था। राजा ने काशीराम को फौज की भर्ती के लिये नियुक्त कर दिया था। कल्लन खाँ, अफजल खाँ आदि रोहिला फौजी नेताओं ने तीरकल में लगभग 200 रोहिल सिपाही एकत्रित कर लिये थे जहाँ से उन्हें भनोरा के लिये इस उद्देश्य से प्रस्थान करना था जहाँ से वे विद्रोह प्रारम्भ कर सकें। गुलाब खाँ के क्रिया-कलापों में और नीलंगा पर आक्रमण में राजा का सीधा हाथ था। गुलाब खाँ वह व्यक्ति थे जिनके नाम से नाना साहब ने दक्षिण भारत में विप्लव का सूत्रपात्र करने के लिये व्यक्तिगत पत्र लिखा था। कौलाओ के राजा दीपसिंह पर मुकद्दमा चला और उन्हें तीन वर्ष का कारावास हुआ।

अन्य विशेष व्यक्ति
सोनाजी पंडित
(दफ्तरदार, जिन्होंने नाना साहब पेशवा को फरवरी 1857 में पत्र प्रेषित किया।)
राव रम्भा निम्बालकर
(रंगाराव पागे से सम्बन्ध)
हल्ली के जयराम पटेल
बाबू राम पटेल पुत्र हल्ली के जयराम पटेल
(पटेल (द्वय) ने लड़ाकू रोहिलें को संरक्षण दिया।)
शेख मदार
(शेख-उद्-द्दौला के गुप्तचर)
गुलाब खाँ
(कोलाओं के जमादार)
बाजुरी
(औरंगाबाद के)
आनन्द राव दाजी
(चखली गाँव के पटेल)
काशी राम
(निवासी कौलावा पुत्र बहादुर सिंह, कोलाओं के राजा द्वारा रिसालदार नियुक्त)
रघुनाथ राव दाजी
(कौलाओं के पटेल)
बसन्त राव
(रघुनाथ राव दाजी पटेल के पुत्र)
लियाकत अली
(जागीदार)
रामेश्वर राव विद्वलराव कुलकर्णी
(पल्लव ग्राम के पटवारी) ceesleerjee
(रंगाराव पागे सम्बद्ध; फौज की भर्ती में व्यस्त)
बन्दे अली पटेल
(रंगाराव पागे सम्बद्ध)
माणिक प्रभू
(रंगाराव पागे सम्बद्ध)
शिव नायक
(पारगी निवासी, रंगाराव पागे से सम्ब्द्ध)
दाजी कुलर्णी
(शिव नायक के वकील, रंगाराव पागे सम्बद्ध)
यशवन्त सुपुत्र दाजी कुलकर्णी
(रंगाराव पागे से समबद्ध)
बख्तावर सिंह
(हैदराबाद के जमादार; रंगाराव पागे से समबद्ध)
लाल मोहम्मद
(मोलास के निवासी)
मोहिउद्दीन खाँ, रोहिला
(जमादार, रघुनाथ राव के व्यक्तियों के साथ मिल गये)
सरवर खाँ
(25 व्यक्तियों के साथ रघुनाथ रावे के व्यक्तियों के साथ मिल गये।)
माधव
(त्रिकाल में जमादार)
नैसफ खाँ, रोहिला
अफसल खाँ
(रोहिला, जमादार)
नूर खाँ
(रोहिला, जमादार)
हाजी अली अब्दुल
(अरब निवासी)
शान्ताजी राव रामराव नायक
अमरगा के महाराज
(रंगाराव पागे से समबद्ध)
सेवर गाँव के नायक
वस्तोली के नायक
वर्की के नायक
माढ़ापु के नायक
होमिनावाद के नायक
कलन खाँ, जमादार
कौलाज के जोशी पुजारी
कालाज के करंगी

शहीद
रंगाराव रत्नाकर पागे
(अंडमान में 1860 में मृत्यु को प्राप्त हुये)

कैदी
(जीवन-पर्यन्त निर्वसन)
रंगाराव रत्नाकर पागे

अन्य
सफर-उद्-द्दौला
(आजीवन कारावास)
काशीराम
(5 वर्ष बेड़ियों के साथ कारावास)
कोलाज के राजा दीपसिंह
(तीन वर्ष का कारावास)
रघुनाथ राव
(तीन वर्ष का कारावास और समस्त सम्पत्ति जब्त)
जयराम पटेल
(तीन वर्ष का कारावास)
बाबू पटेल
(तीन वर्ष का कारावास)
शेख मदार
(एक वर्ष का कारावास)1857 के विद्रोह से सम्बन्धित राजकीय बन्दी हैदराबाद से थाना जेल में प्रतिबन्धित कर दिये गये।
शेख मोहिताप पुत्र शेख आजम
(वादेर तालुका, हैदराबाद, हैदराबाद दक्षिण, थाना जेल 30-07-1857)
मगबूलशा पुत्र मिर्जा मजली
(हैदराबाद, थाना जेल आगमन 30-07-1857)
नौरा बीबी, पत्नी मगबूलशा
(हैदराबाद, थाना जेल आगमन 30-07-1857)
रघु विश्वनाथ
(बाह्राण, खरगोन, तालुका नसरपुर थाना जेल आगमन 13-07-1857)
गनेश गिर गुरू अम्बेगिर
(गोसाई हिन्दू जि. नगाचय अम्बा; थाना जेल आगमन 21-10- 1857)
हुसेन अली शाह पुत्र सुल्तान अली शाह
(फकीर नि. धादुर जिला औरंगाबाद, आगमन 27-10-1857)

स्त्रोत
भारतीय राष्ट्रीय ग्रन्थ अभिलेखागार
(हैदराबाद प्रतिनिधित्वालय लेखा ग्र. 68-71; 74-75; 93; 283 (मुवारिज-उद्-द्दौला 1884 के निमित्त)
आन्ध्र प्रदेश, राजकीय ग्रन्थ अभिलेखागार
(स्वतंत्रता आंदोलन सम्बन्धी आलेख-नत्थी)
बम्बई ग्रंथ अभिलेखागार
राज. वि. ग्र. 31, 1857 पृ.. 479-482.
हैदराबाद के घटनाक्रम गृ.3, पृ.सं. 230-31 क़.च्.क्त. ग्र. 2 पृ. सं. 160-177
आंग्ल (इंगलिश मन) 29-03-1859, 12-04-1859, 23-04-1859, 03-05-1859 आदि।
विलग्रामी तथा विलमोर, ऐतिहासिक एवं घटनात्मक स्थूल वर्णन महामहिम निजाम उपनिवेश पृ.सं. 112-114
विग्रस, निजाम पृ. सं. 82-88
रेगानी-निजाम-ब्रिटिश सम्बन्ध पृ. 320-323
सेतु माधवराव पगडी सन् (चे स्वातंत्र्ययुद्ध आणि हैदराबाद, प्रतिष्ठान; मराठी नियत कालिक पत्रिका मई 1955 से मार्च 1956.
वी. गोविन्दाराजाचारी हैदराबाद राज्य 1857 के विप्लव में भूमिका पी. एच. डी. उपाधि के लिये आन्ध्र प्रदेश विश्व विद्यालय में शोध प्रस्तुत 1972 अप्रकाशित)

 

मध्य तटीय आन्ध्र में विप्लव
(राजमहन्द्री, मछली पटनम्, गुन्टूर )


जुलाई 1857

1857 : जुलाई, मछली पटनम के ब्रिटिश कबायदी मैदान में खुले रूप में स्वतन्त्रता ध्वज का आरोहण।
1857 : 21 अगस्त, राजामुन्दरी में ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध योजना बनाने के अपराध में 11 व्यक्तियों की गिरफ्तारी।
1857 : सितम्बर, यरनागुदेम (राजामुन्दरी) में कारकोन्डा सुव्वा रेड्डी के अन्तर्गत विप्लव का प्रारम्भ।
1857 : अक्टूबर, ब्रिटिश फौज के सिपाही गुन्टूर में विप्लवकारी गतिविधियों के लिये गिरफ्तार कर लिये गये।
1857 : 7, नवम्बर, मछलीपटनम् के जगिया पेट शहर पर आक्रमण इसमें ब्रितानियों की भारी क्षति हुई।
1858 : जून, यरनागुदेम का बलवा, कारकोदा के नेता सुवा रेड्डी व अन्य की ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तारी।
1858 : 7 अक्टूबर, कारकोदा सुव्वा रेड्डी तथा अन्य क्रान्तिकारियों का यरनागुदेम में बलवा तथा फांसी।

राजमहन्द्री

मद्रास सरकार ने अपने गश्ती पत्र सं. 798 दिनाँक 10 जुलाई, 1857 को, 1857 की 14वीं धारा के अनुसार, जिलाधीश को अतिरिक्त शक्ति प्रदान कर दी कि वह बंगाल सेना के सिपाहियों को कारावास में रोके रख सकते हैं जो जिले में प्रवेश करें और सरकार को प्रत्येक अवसर की सूचना दें। ये घुमक्कड़ सिपाही इस विस्फोटक स्थिति में खतरनाक तत्व माने गये। इसी के अनुसार जिले में अनेक स्थानों पर बड़ी संख्या में गिरफ्तारियाँ की गई। इस प्रकार राजामुन्दरी में बंगाल रेजीमेण्ट के चार शंकायुक्त सिपाही, श्री किशनजी, श्री रामप्रतापजी, श्री जीवामनजी तथा रघुनाथ को 17 जुलाई, 1857 को गिरफ्तार कर लिया गया। कुछ दिनो के पश्चात् 2 अगस्त को, 34वीं बंगाल स्थानीय पैदल सेना से तथा बैरकपुर से निकाले गए सिपाही लॉस-नायक दीन, बालकृष्ण, सेना साहब को रोक लिया गया। तारू, एक तम्बू लस्कर को शंकालु चरित्र का होने के कारण उसी मास रोका गया। अगस्त 1857 में उस प्रकार के दो व्यक्ति नारयण दास, मोहम्मद अली को शंका के आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया। 8 अगस्त को भारत निवासी भूरा नामक ब्राह्मण गिरफ्तार कर लिये गए, इस प्रकार युद्ध के काफी पहले से ब्रिटिश सरकार चेतन्य थी और शंकालु सिपाहियों, विशेषकर बंगाल सेना के निकाले गये सिपाहियों को जिनसे सरकार भयभीत थी और जो विप्लव का उपदेश देते थे उनको तुरन्त गिरफ्तार कर लेती थी।

21, अगस्त, 1857 एफ. वी. मोलोनी, राजामुन्दरी के मजिस्ट्रेट के प्रधान सहायक ने निम्न ग्यारह व्यक्तियों को ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध सीधे षडयंत्र रचने के अभियोग के कारण गिरफ्तार किया।

खाजी मुन्दादर अली
साहलिव वेग
सिलर खान
मीर लव्वा अली
गालिव वेग
कजाह मोहम्मली अली खाँ ऊर्फ दादी साहब
हुसैन बेग
मीर हुसैन
रहिन बेग
मीर बजीर अली
मुस्ताव साहब

इन ग्यारह व्यक्तियों में से सिलर खाँ तथा मीर लब्बा अली को बाद में छोड़ दिया गया। ब्रिटिश सरकार ने सूचना एकत्रित कर ली थी कि इन व्यक्तियों ने ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध मुहर्रम के महीने में जागृत होने का षडयन्त्र रचा था। रहिमन बेग प्रमुख नेता थे। मोलोनी ने इस प्रकार यह दावा किया कि एक गम्भीर ब्रिटिश सरकार विरोधी षडयंत्र को प्रारम्भ में ही कुचल दिया गया। इसी प्रकार से सावधानी के रूप में राजामुन्दरी में राजद्रोहियों के विपरीत आवश्यकता पड़ने पर नियन्त्रक अफसर सापर माइवर डेविलेश्वराम से दो कम्पनी सिपाहियों की माँग की गई। इस मामले में मोलोनी ने चीफ सेक्रेटरी मद्रास सरकार को एक पत्र में स्पष्ट किया कि षडयन्त्र जन-साधारण स्वरूप लिये अनेकों व्यक्तियों, विशेष रूप से मुसलमानों से परिपूर्ण था। (राजामुन्दरी दिनाँँक 22 अगष्त, 1857, मद्रास न्यायिक सत्र संख्या 38, एक सित्बर, 1857) उन्होंने निष्कर्ष निकाला : "मैं अब अपराधियों के खिलाफ आगे भी प्रमाण जुटाने का प्रयत्न कर रहा हूँ, परन्तु सफलता की क्षीण आशा है, क्योंकि वे सब षडयन्त्र में कुछ भी जानते हैं, मुसलमान हैं तथा सम-धर्माल्म्बियों के विरूद्ध कोई भी गवाही नहीं देंगे तथा सम्भावित रूप से, कम और ज्यादा वह गहनता से संलग्न हो जायेंगे।" षडयन्त्र मछलीपट्टम तथा गुन्टुर तक फैल चुका है, अतः मोलोनी ने उन जिलों के मजिस्ट्रेटों को तीव्रतम सूचना भेज दी है जो सुरक्षा के लिए नियुक्त्त है। केप्टन बुड जो राजमुन्दरी के नियन्त्रक हैं उन्होंने स्वयं उन तीन व्यक्तियों के मकानों की तलाशी ली है। रहिमन बेग के मामले में हाल में भरी हुई बन्दूक और नया बना कारतूस पाया गया। इसके अतिरिक्त योजना से सम्बन्धित कागजों का एक पुलन्दा भी पाया गया। चूँकि यह योजना शीघ्र पकड़ ली गई अतः इसके माध्यम से कुछ पता नहीं चल सका।

इसके तुरन्त बाद में राजामुन्दरी योजना से पूर्णतः असम्बन्धित एक विद्रोह, येर्नागुदेम के उत्तर में सितम्बर, 1857 के किस दिन विद्रोह प्रारम्भ होगा। विशेषतः नवम्बर, 1857 के आरम्भ से जादरमुल्ला तालुके के पहाड़ी व्यक्ति तथा तोड़ेमुल्ला तालुके में येर्नागुदेम के राजासुन्दरी जिले के पहाड़ी लोग ब्रिटिश संस्थानों के प्रति हथियार उठा लेंगे। येर्नागुदेम पहाड़ियों के क्षेत्र में रेड्डी तथा कोया जातियों के लोग बसे है; जिनमें अधिकांशतः अपने प्रमुख की पुकार पर खड़े होने को तत्पर रहते थे तथा वे मशालों, तीर-तरकश से विभूषित रहते थे।

ब्रिटिश संस्थानों पर आक्रमण के प्रमुख नेता करकोन्दा सुव्वाराव रेड्डी थे जो राजामुन्दरी जिले में गोताला पुलिस क्षेत्र में गोदावरी नदी के किनारे करतूर के निवासी थे। राजामुन्दरी के इस समय के मजिस्ट्रेट ए पुरविस के अनुसार उनका विद्रोह एक विवाह के प्रतिफल स्वरूप स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हुआ अब शंकर स्वामी वुत्तया गोदस के मुन्सिफ के आस-पास वाले व्यक्तियों से विवाह कलह के रूप में उत्पन्न हुआ। सुव्वारेड्डी ने अपने दल सहित बुतयागोदम पर आक्रमण किया और नयावरम क्षेत्र के निवास ग्रह ले लिये। तुरन्त ही दूसरे प्रमुख निवासी कोपिले के कोरल वेंकट सुव्वा रेड्डी तथा अनेक पहाड़ी प्रमुख तथा अन्य दूसरे लोग मिल गये। प्रभावशाली व्यक्ति जैसे सू रेड्डी वेकहिया जो राका पिल्ले के जमींदार थे, भत्राजलंम के राजा जिन्होंने गोदावरी के किनारे के पार राजामुन्दरी जिले के सीमावर्ती गाँव ले लिये तथा दूसरों ने करकोंदा के सुव्वा रेड्डी को उनके विप्लव में सहायता प्रदान की। निजाम के मंत्री ने ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि को हैदराबाद उनकी युद्ध-परक कारगुजारियों की सूचना भेज दी और ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि ने फलस्वरूप मद्रास सरकार को सूचित कर दिया। अब घटना वैवाहिक-कलह तक सीमित नहीं रह गई इसने विशाल रूप धारण कर लिया तथा ब्रिटिश विरोध गम्भीर रूप में परिवर्तित हो गया।

राजा मुन्दरी के जिलाधीश ने खान खोदने वालों और खाई निर्माण कर्त्ताओ की दो कम्पनियाँ सुव्वा रेड्डी के व्यक्तियों के विरोध-स्वरूप भेज दीं। जिलाधीश के दलों ने यर्नागुदम को अधिकार में ले लिया तथा सुव्वा रेड्डी के दल पोलावरम् तालुके के जिलुगुमिल्ली पर आक्रमण भी किया। इस जंगली संघर्ष में सुव्वा रेड्डी के लोगों का हाथ ऊपर रहा। निराशापूर्ण ब्रिटिश फौजों ने खेतों में खड़ी फसलों को जला दिया तथा कुछ गोंवों को भी भस्म कर दिया जो सुव्वा रेड्डी को सहायता देते थे।

जनवरी सन् 1858 के प्रारम्भ में राजामुन्दरी के मजिस्ट्रेट ने घोषणा की कि पहाड़ी के प्रमुखों को गिरफ्तार कराने वालों को अमुक राशि प्रदान की जावेगी।

करकोन्दा सुव्वारेड्डी :500 रु. (यह राशि बाद में 2500 रु. कर दी गई)
कोरला सुव्वारेड्डी :500 रु. (यह राशि बाद में 1000 रु. कर दी गई)
करकोन्दा मुन्गे रेड्डी :300 रु.
कोरला सीता रम्मैया :300 रु.
चिन्तापल्लि दासी रेड्डी :200 रु.
कोरला सिंगे रेड्डी :200 रु.
कोरला राजे रेड्डी :100 रु.

चूँकि राजद्रोहियों की गिरफ्तारी विफल रही अतः ब्रिटिश सरकार मार्च, 1858 में देय राशि की रकम में उपरोक्त दो नेताओं के लिये वृद्धि कर दी।

बीस नेताओं (जिनमें उपरोक्त सात व्यक्ति सम्मिलित हैं जिनकी गिरफ्तारी के लिये उपरोक्त इनामों की राशि घोषित हुई) राजद्रोह तथा विद्रोह के दो अभियोग लगाये गये तथा उन्होंने सशस्त्र विद्रोहियों की एक टुकड़ी करकौंदा सुव्वा रेड्डी तथा मुन्गे रेड्डी के नेतृत्व में तैयार की जिन्होंने 23 सितम्बर, 1857 को बुतइगुदेम तालुके के ताउदेमुल्ला के राजामुन्दरी के जिले में कार्यकारी सहायक मजिस्ट्रेट को घेर लिया तथा कुछ कैदियों को छोड़ने के लिये उसे बाध्य कर दिया तथा कानून का प्रतिरोध किया। (मद्रास सेन्ट जॉन्स दुर्ग न्यायिक सूचना प्रति संख्या 2, दिनाँक 28-11-1857)

सुमन ननदाप्पातोते मुतईयालू
वाउदला दास रेड्डी चाउलवाला मोययर्प्पा
गुन्जाररपू पेंतियाह करातम गांगूलू
मुदाकम गांगलू वुन्के गांगलू
तेलम सिगप्पा कचाला राजा रेड्डी
सईद लाल सुरअपू पूलास
छुदम गांगलू

अन्त में कारकोंदा सुव्वा रेड्डी, विप्लव के प्रमुख नेता तथा अन्य नेता कोरला सुव्वा रेड्डी को उनके भाई सहित जुन 1858 में ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया।

राजामुन्दरी के आयुक्त की अदालत में बड़ी संख्या में विद्रोहियों पर अभियोग चलाया गया। सुनवाई के दौरान सुव्वा रेडी ने कहा कि उनका विद्रोह उत्तर भारत से आने वाली सूचनाओं पर आधारित था। उन्होंने स्वीकार किया कि यह सुनकर कि नाना साहेब पेशवा अपनी विजयी सेना के साथ आगे बढ़ते चले आ रहे है वह विद्रोह करने के लिए प्रोत्साहित हुए, उन्होंने भी अपने सहयोगियों को यह कह कर प्रोत्साहित किया कि नाना साहब पेशवा की विजयी सेनाएँ भारत के विभिन्न भागों में आगे बढ़ रही हैं और जो कोई भी ब्रिटिश हुकूमत के विरूद्ध अधिकाधिक प्रयास करेगा पुरस्कृत किया जायेगा।

निम्नांकित दण्ड घोषित किये गये
कारकोंदा, सुव्वा रेड्डी और कोर्ला सीता रमैया का बुतयागुदेम दनी के किनारे सार्वजनिक रूप में फाँसी पर लटकायें जायें। कोर्ला वैकट सुव्वा रेड्डी और गोरूगुंत्तल कोमेमेरेड्डी पोलावरम में सार्वजनिक रूप से फाँसी पर लटकाये जायें था कारकोंदा थामे रेड्डी को तुडेगुन्टा में सार्वजनिक रूप से फाँसी पर लटकाया जाये।

उपरोक्त पाँचों व्यक्तियों को राजामुन्दरी से उन स्थानों पर ले जाया गया जहाँ उन्हें सार्वजनिक रूप से फाँसी लटकाया जाना था। यह सात अक्टूबर, 1858 को किया गया। लाशों को वध स्थलों पर ही दफना दिया गया। शायद बुहत से नेता विभिन्न मुठभेड़ों में मारे गये थे और इसी कारण उनके नामों का उल्लेख आयुक्त-अदालत के द्वारा सुनाये गये फैसलों में स्पष्ट नहीं हुआ। कुछ और भी नामों के उल्लेख फैसलों मे हुये। अन्य नेताओं को भिन्न-भिन्न अवधि के कारवास की सजायें सुनाई गई। उपरोक्त के अतिरिक्त कुछ और अभियुक्तों के नाम भिन्न-भिन्न जेलों की सूचियों में थे, जो सुव्वा रेड्डी के सम्बद्ध थे, यथा-मड्डाल गुब्बलम, पत्ती, रामे रेड्डी और गन्जम सामो (कृपया देखें कैदियो की सूची)

तत्पश्चात् जून, 1862 में, ब्रिटिश हुकूमत ने राजामुन्दरी जिले तथा अन्य जिलों में भी इस प्रकार के आदेश जारी कर दिये गये कि जिन जमींदारों ने कुछ जिन्होंने 1857 ते विद्रोह में भाग लिया था, अथा जिन पर ऐसा करने का संदेह
था, उनकी बड़ी और छोटी तोपों को नष्ट कर दिया जाय।

मछलीपट्टनम्

मछलीपट्टनम जिले (जिसे उस समय मसुलीपट्टम कहा जाता था) की मुस्लिम जनता का हैदराबाद के सहयोगी राष्ट्रभक्तों से निकट सम्पर्क था। अतः हैदराबाद में विप्लव के साथ ही साथ इस जिले में भी विप्लव के प्रथम चिन्ह प्रकट हुए। वहाँ यह जानना आवश्यक है कि हैदराबाद के ब्रिटिश प्रतिनिधि आवास पर 17 जुलाई 1857 को आक्रमण हुआ था।

10 जुलाई, 1857 को प्रातः मछलीपट्टम में सिविल लाइन्स के खुले मैदान में आजादी का हरा झण्डा फहराया गया। वहाँ से कुछ ही दूरी पर ब्रिटिश फौज का कवायद का मैदान था। झण्डे के दण्ड से एक पट्टिका लगी थी जिस पर हिन्दुस्तानी में लिखा था-सभी अंग्रेजों को खत्म कर दो। इसको देखकर ब्रिटिश जिलाधीस ने झण्डे को जब्त कर लिया और यह घोषणा कर दी कि जो कोई उस पट्टिका को लिखने वाले को गिरफ्तार करवायेगा उसे 500 रु. का इनाम दिया जायेगा। 7वी स्थानीय पैदल देना की सांय को कवायद हुई उसमें पल्टन के लोगों को उक्त ब्रिटिश घोषणा के विषय में समझाया गया। मछलीपट्टनम के ब्रिगेडियर कमान्डंगि ने उसी दिन से पूर्व उपायों के रूप में प्रतिनिधि आवास के सैनिक-आवास की शक्ति बढ़ा दी और उपायों आदि पर भी सुरक्षा बढ़ा दी गई। उपलब्ध अभिलेख से ऐसा प्रकट नहीं होता कि झण्डा लहराने वाले और उस पर पट्टिका लगाने वाले कभी पकड़े गए। (फौज के एडजुटेन्ट) जनरल (सेना के उच्च अधिकारी) की पत्र संख्या 77 दिनाँक 18 जुलाई 1857 जो मद्रास सरकार के फौजी विभाग के सेक्रेटरी को लिखा गया- मद्रास प्रशासन की रपट वर्ष 1857-58

उसी महीने, मछलीपट्टन के जिला मजिस्ट्रेट ने मद्रास सरकार को लिखा कि वह इस बात से सहमत नही है कि बंगाल के छँटनी किये गये सिपाहियों को उस जिले से प्रवेश करने से रोक कर वापस हैदराबाद की सीमाओं की ओर मोड़ा जाय, जहाँ उसे डर था कि, वे विद्रोही शीघ्र ही सहयोगी ढूँढ लेंगे। अतः लुधियाना प्रतिनिधि के दो सिपाही गोविन्दाजी और नन्दलालजी और एक और नरायण सिंह जिन्होंने मछलीपट्टम जिल में प्रवेश किया था उनको गिरफ्तार किया मछलीपट्टनम की जेल में बन्द कर दिया।

हैदराबाद की सीमा के पूरे क्षेत्र में उत्तेजना व्याप्त थी। 9 सितम्बर, 1857 को दो विद्रोही -कल्ल उर्फ यतिम शा फकीर जिन पर राजद्रोह का अभियोग था और हुसैन शा फकीर, जिन पर राजद्रोह और गदा के लिए प्रेरित करने का अभियोग था और दोनों को हैदराबाद प्रशासन ने आजीवन काला पानी की सजा दी थी, उन्हें मेजर जनरल कमाण्डिंग हैदराबाद सहायक फौज ने मछलीपट्टनम को भेज दिया। सत्र-न्यायाधीश ने दोनों अभियुक्तों को एक राइफल टुकड़ी के साथ कलकत्ता भेज देने कि सिफारिश की थी लेकिन मद्रास प्रशासन ने उन्हें मद्रास भेजने का आदेश दिया ताकि उन्हें अण्डमान रवाना किया जाय। ब्रिटिश प्रशासन ऐसे समय में कोई भी ऐसा कदम उठाने के विषय में चौकन्ना था, जिसका सुरक्षा पर कोई प्रभाव पड़े।

मछलीपट्टनम में जो ब्रिटिश अधिकारी ने उन्हें हैदराबाद की तरफ से विद्रोहियों के आक्रमण 7 नवम्बर, 1857 को हुआ भी था जब 400 रूहिल्लों और तेलुगुओं के गिरोह ने जग्गियापेट शहर पर आक्रमण किया। जग्गियापेट शहर जिले का एक बड़ा व्यापार केन्द्र था। ब्रितानियों की ओर के कचहरी गारद के हवलदार, दो नायक और लगभग एक लाख रूपये कीमत की निजी सम्पत्ति आक्रमणकारी उठा ले गये। मछलीपट्टन के अधिकारियों द्वारा हैदराबाद के प्रतिनिधि से प्रार्थना की गई कि आक्रमणकारियों की खोज करके उन्हें सजा दी जाय। बाद में उनमें से कुछ हैदराबाद क्षेत्र में पकड़े गये और उन पर अभियोग चला। अभियोग का फैसला 1854 में सुनाया गया। उसके अनुसार छह को मृत्यु दण्ड, बारह को आजीवन काले पानी की सजा और आठ को दूर स्थित जेलों मे सश्रम कारवास दिया गया।

दिसम्बर, 1857 में, ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त किये गए एक सिपाही मुहम्मद नूरूद्दीन ने शपथ लेकर बताया की मछलीपट्टन जिले के जमींदार ब्रिटिश सरकार के खिलाफ उठ खड़े होने के उद्देश्य से बारूद खरीद रहे हैं। बाद में यह सूचना गलत सिद्ध हुई, 1858 में कोई चिन्ताजनक घटना नहीं हुई।

गुन्टूर

गुन्टूर कलेक्ट्री में 1850 से ही रैय्यतवारी प्रथा कठोरता से ब्रिटिश प्रशासन ने लागू कर रखी थी। अतः 1851 में गुन्टूर के कुछ रैय्यतों ने जिनको स्थानीय अधिकारियों से कठोर कराधान और उनकी वसूली के लिए अपनाये जा रहे निर्मम तरीकों के प्रति शिकायतों पर न्याय नहीं मिला था गर्वनर-इन-काउन्सिल, मद्रास को एक आवेदन प्रस्तुत किया। उसमें वर्णन किया कि किस प्रकार जब जमाबन्दी के समय वे निर्धारित कर से अधिक देने से वे इन्कार करते थे तो कुछ रैयत को गिरफ्तार कर लिया जाता था, अन्य के घरों को उजाड़कर सरकारी कारिन्दे लूट लेते थे। उनकी सम्पत्ति के विक्रय और किराये से सिपाहियों को भत्ता दिया जाता था। कुछ रैय्यत के जानवरों को चरने नहीं दिया जाता था, उनके परिवारों को प्रदेश के लिए तालाबों और कुओं से पानी नहीं भरने दिया जाता था। 1859 में मद्रास नेटिव एसोसियेशन ने लार्ड स्टेनले, जो भारत का सेक्रेटरी आफ स्टेट था को दिये गए ज्ञापन में यह बात विशेष जोर देकर प्रकट की कि गुन्टूर का मामला कोई अपवाद नहीं हैं। प्रान्तीय अन्य सम्भागों में भी इसी प्रकार का बर्ताव हो रहा है, कहीं कम अधिक। (मद्रास नेटिव एसोसियेशन का लार्ड स्टेनले, सेक्रेटरी ऑफ स्टेट भारत, को दिये गए ज्ञापन दिनाँक जून 1859, जिसका सन्दर्भ 24 जून, 1869 के सी. ई. ट्रेवेलियन के कार्यवृत में दिया गया : एफ. एस. ए. पी.(ए) खण्ड एक-आलेख संख्या 45 और 46 पी. पी. 195-203) 1851 के गुन्टूर आवेदन एवं 1859 के मद्रास ज्ञापन वहाँ के किसानों की दुर्दशा और ब्रिटिश राजा के अन्याय और निर्भयता पर प्रकाश डालते हैं।

यह स्वाभाविक था कि, गुन्टूर क्लेक्ट्री को किसान, मद्रास प्रेसीडेन्सी के अन्य भागों के किसानों के अनुरूप ही रैय्यतवार प्रणाली के अन्तर्गत ब्रिटिश सरकार के द्वारा अमल में लाए जा रहे कर निर्माण और उनकी वसूली के निर्मम तरीकों के प्रति उत्तेजित थे।
ऐसी स्थिति में मई, 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के पिछड़ने के पश्चात् भारत के सिपाही बाहर से आकर जिले में प्रवेश करने लगे। इस प्रकार बंगाल के दो सिपाही- हरसी बोली और बासौद अक्टूबर, 1857 में गुन्टूर में गिरफ्तार कर लिए गए। यह जानने योग्य है कि ब्रिटिश फौज की एक रेजीमेन्ट गुन्टूर में रहती थी।

उसी महीने दचपिल्ली पल्टन के एक जमादार, फौज से बर्खास्त होने पर गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर आरोप था कि उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम के पक्ष में आदरणीय ग्रोनिंग एव उसके दो सहयोगी धर्म-प्रचारक से स्वतन्त्रता एवं ब्रिटिश प्रशासन के विपरीत वाद-विवाद किया था। वीरानह को बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया किन्तु उसे फौज में वापस नहीं लिया गया।

दिसम्बर, 1857 में, मद्रास प्रशासन ने गुन्टरू के मजिस्ट्रेट का ध्यानाकर्षण 22 जुलाई, 1857 के उस आदेश की ओर किया जिसमें सीमाओं की सुरक्षा और शक्ति के लिए किसी भी संस्था में सिपाही नियुक्त करके पुलिस शक्ति को सुदृढ़ करने को कहा गया था। संक्षिप्त अभियोग चलाये गये तथा जिले में उठने वाले किसी भी विद्रोह को बलपूर्वक दबा देने के प्रयास किये गए।

प्रमुख नेता
राजामुन्दरी
कारकोन्दा सुव्वा रेड्डी, कोरल वेंकट सुव्वा रेड्डी
रहिमान बेग

अन्य विशेष व्यक्ति
राजामुन्दरी
भद्राचलम के राजा सु रेड्डी वैकंया

शहीद
राजमहन्द्री कारकोन्दा सुव्वा रेड्डी
(अक्टूबर, 1858 को महायुगेदेभ में सार्वजनिक रूप से 1858 में फाँसी पर लटकाए गए।)
कोरल सीतारमैय्या
(7 अक्टबर, 1858, को बट्टायगुम में सार्वजनिक रूप से फाँसी पर लटकाए गए।)
कोरल वैंकट सुव्वा रेड्डी
(7 अक्टूबर, 1858 को पुलावरम में सरेआम फाँसी पर लटकाए गए।)
गोरूगुन्तल कोमे रेड्डी
(7 अक्टूबर, 1858को पुलावरम में सरेआम फाँसी पर लटकाए गए।)
कारकोन्दा थामे रेड्डी
(7 अक्टूबर, 1858 तुडेगुन्ता में सरेआम फाँसी पर लटकाए गए।)

बन्दी
राजामुन्दरी :
राजामुन्दरी षडयन्त्र में संलिप्त :
खाजी मुन्दादर अली
हुसैन बेग
सालिब बेग
मीर हुसैन
सिलार खाँ (बाद में रिहा)
रहिमान बेग
मीर लब्बा अली (बाद में रिहा)
मीर बजीर अली
गालिब बेग
मुस्ताव साहब
काजा मोहम्मद अली खाँ ऊर्फ दादी साहब
कारकोन्दा सुव्वा रेड्डी के नेतृत्व में 1857-58 की बगावतों मे संलिप्त

(ए)
सैयद लाल (14 वर्ष सश्रम कठोर कारावास)
सनाम नन्दप्पा (12 वर्ष स. क. का.)
वुंके गांगुल (10 वर्ष स. क. का.)
तोते मुत्यालु(10 वर्ष स. क. का.)
तेलल्लम सिंगप्पा (10 वर्ष स. क. का.)
कचला राजा रेड्डी (10 वर्ष स. क. का.)
चौलावला मौरप्पा (10 वर्ष स. क. का.)
गुन्जरापु पेन्टिया (7 वर्ष स. क. का.)
सुरापु पुल्लाशाह (7 वर्ष स. क. का.)
कर्त्तम गांगुलु (7 वर्ष स. क. का.)
चौडम गांगुलु (7 वर्ष स. क. का.)
मडाकम गांगुल (7 वर्ष स. क. का.)

(बी)
कारकोन्दा मुंगे रेड्डी (गिरफ्तार करवाने वाले को 300 रु. का इनाम घोषित)
कोरल सिंगे रेड्डी (गिरफ्तार करवाने वाले को 200 रु. का इनाम घोषित)
कोरल राजे रेड्डी (गिरफ्तार करवाने वाले को 300 रु. का इनाम घोषित)

(सी)
कारकोन्दा सुव्व रेड्डी 1857-58 से सम्बद्ध गोदावरी जिले की हलचलों में संलिप्त उन लोगों के नाम जो तत्कालीन जेलों की तालिकाओं में थे:
मुड्डलागडु (पोलावरम के : राजामुन्दरी जेल में)
गुब्बालम पत्ति (राजामुन्दरी जेल में)
गन्मज सामो ( राजामुन्दरी के : कुड्डालोर जेल में)

मछलीपट्टनम :
आजन्म कालापानी
कल्लू उर्फ यतीम शा, फकीर
हुसैन शा, फकीर
(दोनों को हैदराबाद के अधिकारियों ने कालापानी की सजा दी थी और उन्हें सितम्बर, 1857 को मछलीपट्टन भेज दिया था।) बारह व्यक्तियों को आजीवन कालापानी की सजा पर अंडमान भेज दिया गया था। 7 नवम्बर, 1857 को जगियापेट पर आक्रमण से सम्बन्धित था।

अन्य
गोविन्द नन्दलाल
नारायन सिंह
आठ व्यक्तियों को विभिन्न जेलों में कारावास की सजा दी गई। आरोप था 7 नवम्बर, 1857 को जागियापेट पर आक्रमण।

गुन्टूर
हरसी बोल बसौद
वीरानह जमींदार

स्त्रोत
तमिलानाडु पुरा लेख-अभिलेखागार, मद्रास
मद्रास सरकार के द्वारा सेंट जार्ज के लिए न्यायिक प्रक्रिया के अध्ययन से:
राजमहन्द्री:
4-51857, 11-8-1857, 1-9-1857, 13-10-1857, 8-1-1858, 19-1-1858, 16-2-1858, 12-3-1858, 18-5-1858, 21-5-1858, 27-8-1858, 21-9-1858, 29-10-1858, 19-11-1858, 26-3-1861, 21-5-1861, 6-6-1862
मछलीपट्टनम :
10-7-1857, 21-7-1857, 9-9-1857, 23-9-1857, 29-9-1857, 24-11-1857, 12-1-1858, 18-5-1858, 25-5-1858.
गुन्टूर :
29-10-1857, 3-11-1857, 8-12-1857, 15-12-1857.
मद्रास प्रशासन की रपट 1857-58, 1858-59 (राजामुन्दरी, मछलीपट्टनम्, गुन्टूर)
एफ. एस. ए. पी (ए)खण्ड 1 :
राजामुन्दरी :
पृष्ठ 38-44, 149-152, 156-161, 182.
मछलीपटनम :
147; 152-153; 164-165; 182-183.
गुन्टूर :
पृष्ठ 61;95
गोदावरी जिला गजटिअर

 

 
क्रांति १८५७

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