क्रांति १८५७
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झांसी की रानी का ध्वज

स्वाधीन भारत की प्रथम क्रांति की 150वीं वर्षगांठ पर शहीदों को नमन
वर्तमान भारत का ध्वज
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क्रांति १८५७
 

प्रस्तावना

  रुपरेखा
  1857 से पहले का इतिहास
  मुख्य कारण
  शुरुआत
  क्रान्ति का फैलाव
  कुछ महत्तवपूर्ण तथ्य
  ब्रिटिश आफ़िसर्स
  अंग्रेजो के अत्याचार
  प्रमुख तारीखें
  असफलता के कारण
  परिणाम
  कविता, नारे, दोहे
  संदर्भ

विश्लेषण व अनुसंधान

  फ़ूट डालों और राज करो
  साम,दाम, दण्ड भेद की नीति
  ब्रिटिश समर्थक भारतीय
  षडयंत्र, रणनीतिया व योजनाए
  इतिहासकारो व विद्वानों की राय में क्रांति 1857
  1857 से संबंधित साहित्य, उपन्यास नाटक इत्यादि
  अंग्रेजों के बनाए गए अनुपयोगी कानून
  अंग्रेजों द्वारा लूट कर ले जायी गयी वस्तुए

1857 के बाद

  1857-1947 के संघर्ष की गाथा
  1857-1947 तक के क्रांतिकारी
  आजादी के दिन समाचार पत्रों में स्वतंत्रता की खबरे
  1947-2007 में ब्रिटेन के साथ संबंध

वर्तमान परिपेक्ष्य

  भारत व ब्रिटेन के संबंध
  वर्तमान में ब्रिटेन के गुलाम देश
  कॉमन वेल्थ का वर्तमान में औचित्य
  2007-2057 की चुनौतियाँ
  क्रान्ति व वर्तमान भारत

वृहत्तर भारत का नक्शा

 
 
चित्र प्रर्दशनी
 
 

क्रांतिकारियों की सूची

  नाना साहब पेशवा
  तात्या टोपे
  बाबु कुंवर सिंह
  बहादुर शाह जफ़र
  मंगल पाण्डेय
  मौंलवी अहमद शाह
  अजीमुल्ला खाँ
  फ़कीरचंद जैन
  लाला हुकुमचंद जैन
  अमरचंद बांठिया
 

झवेर भाई पटेल

 

जोधा माणेक

 

बापू माणेक

 

भोजा माणेक

 

रेवा माणेक

 

रणमल माणेक

 

दीपा माणेक

 

सैयद अली

 

ठाकुर सूरजमल

 

गरबड़दास

 

मगनदास वाणिया

 

जेठा माधव

 

बापू गायकवाड़

 

निहालचंद जवेरी

 

तोरदान खान

 

उदमीराम

 

ठाकुर किशोर सिंह, रघुनाथ राव

 

तिलका माँझी

 

देवी सिंह, सरजू प्रसाद सिंह

 

नरपति सिंह

 

वीर नारायण सिंह

 

नाहर सिंह

 

सआदत खाँ

 

सुरेन्द्र साय

 

जगत सेठ राम जी दास गुड वाला

 

ठाकुर रणमतसिंह

 

रंगो बापू जी

 

भास्कर राव बाबा साहब नरगंुदकर

 

वासुदेव बलवंत फड़कें

 

मौलवी अहमदुल्ला

 

लाल जयदयाल

 

ठाकुर कुशाल सिंह

 

लाला मटोलचन्द

 

रिचर्ड विलियम्स

 

पीर अली

 

वलीदाद खाँ

 

वारिस अली

 

अमर सिंह

 

बंसुरिया बाबा

 

गौड़ राजा शंकर शाह

 

जौधारा सिंह

 

राणा बेनी माधोसिंह

 

राजस्थान के क्रांतिकारी

 

वृन्दावन तिवारी

 

महाराणा बख्तावर सिंह

 

ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव

क्रांतिकारी महिलाए

  1857 की कुछ भूली बिसरी क्रांतिकारी वीरांगनाएँ
  रानी लक्ष्मी बाई
 

बेगम ह्जरत महल

 

रानी द्रोपदी बाई

 

रानी ईश्‍वरी कुमारी

 

चौहान रानी

 

अवंतिका बाई लोधो

 

महारानी तपस्विनी

 

ऊदा देवी

 

बालिका मैना

 

वीरांगना झलकारी देवी

 

तोपख़ाने की कमांडर जूही

 

पराक्रमी मुन्दर

 

रानी हिंडोरिया

 

रानी तेजबाई

 

जैतपुर की रानी

 

नर्तकी अजीजन

 

ईश्वरी पाण्डेय

 
 

उत्तरप्रदेश के क्रांतिकारी


1.  मौलाना मोहम्मद अब्दुल बरी
2.  सूफी अम्बा प्रसाद
3.  डा. मुख्तार अहमद अन्सारी
4.  बनारसी दास चतुर्वेदी
5.  चन्दन सिंह गढ़वाली
6.  चन्दर भानु गुप्त
7.  मैथिलीशरण गुप्त
8.  शिव प्रसाद गुप्त
9.  रफी अहमद किदवई
10.  डॉ. राम मनोहर लोहिया
11.  मौलाना हुसैन अहमद मदानी
12.  राजा महेन्द्र प्रताप
13.  मदन मोहन मालवीय
14.  द्वारका प्रसाद मिश्रा
15.  मोहम्मद अली
16.  नरेन्द्र देव आचार्य
17.  राम प्रसाद बिस्मिल
18.  सम्पूर्णान्द
19.  सचिन्द्रनाथ सान्याल
20.  लाल बहादुर शास्त्री
21.  श्री प्रकाश
22.  हरिशंकर शर्मा
23.  मौलाना शौकत अली


मौलाना मोहम्मद अब्दुल बरी (1878-1926)

अब्दुल का जन्म 1878 में लखनऊ में हुआ था। उन्हें पश्चिमी शिक्षा व्यवस्था से सख्त नफरत थी। उन्होंने एक रूढ़िवादी मुस्लमान के रूप में अपना जीवन जिया। उनका मानना था कि भारत में मुस्लिम सम्प्रदाय की बदहाली का कारण ब्रिटिश प्रभाव था। उन्होंने ज़माते-उमेला-इहिन्द की स्थापना की। उन्होंने खिलाफत आन्दोलन में अहम भूमिका निभाई।

 


सूफी अम्बा प्रसाद (1858-1915)

सूफी अम्बा प्रसाद का जन्म 1858 में उ.प्र. के मुरादाबाद नगर में एक कायस्थ परिवार में हुआ। उन्होंने मुरादाबाद तथा जालन्धर में अपनी शिक्षा ग्रहण की। वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनुयायी तथा सरदार अजीत सिंह के नजदीकी सहयोगी थे। वे एक प्रतिष्ठित पत्रकार थे तथा एक क्रांतिकारी स्कूल से संबंध रखते थे। वे एक बहुसंख्यक लेखक थे तथा इन्होंने असंख्य पुस्तकों की रचना की।

सूफी अम्बा प्रसाद ने भारत में ब्रिटिश सरकार की नीतियों यहां तक आर्थिक नीतियों का सख्त रूप से विरोध किया। हालांकि उन्होंने ब्रिटिश सरकार की उस व्यवस्था की प्रशंसा की जिसमें लेखक को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता थी।

सूफी अम्बा प्रसाद पारसी भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे तथा सन् 1908 में वे ईरान चले गये। इन्होंने ईरानी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आम आन्दोलन किये। वे अपने सम्पूर्ण जीवन में वामपंथी रहे तथा 12 फरवरी, 1921 में ईरान निर्वासन में मृत्यु को प्राप्त हुए।


डा. मुख्तार अहमद अन्सारी (1880-1936)

अन्सारी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले से थे। मुख्तार अहमद अन्सारी का जन्म 25 दिसम्बर, 1880 में हुआ। उनके पिता हाजी अबदुर-रहमान तथा इलाहन बीबी थी। मुख्तार अहमद ने अपनी तालीम गाजीपुर, इलाहाबाद तथा हैदराबाद से प्राप्त की। उन्होंने अपनी मेडिकल शिक्षा मद्रास कॉलेज से की। उच्च मेडिकल अध्ययन के लिए वे इंग्लैण्ड गये। वे वहाँ शल्य चिकित्सा में प्रतिष्ठित हुए। डा. अन्सारी 1900 से 1910 तक इंग्लैण्ड में रहे। वहां पर उनके भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं से आत्मीय संबंध विकसित हुए, जो वहाँ उन दिनों दौरे पर आये थे। मोतीलाल नेहरू, हकीम अजमल खां तथा नौजवान जवाहर लाल नेहरू उनमें से कुछ ऐसे ही नेता थे।

डॉ. अन्सारी सन 1910 में भारत लौटे तथा दिल्ली में अपनी प्रेक्टिस शुरू कर दी। उन्होंने राजनीति में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया तथा सन 1916 के लखनऊ समझौते में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सन 1918 में दिल्ली में मुस्लिम लीग की बैठक की अध्यक्षता की। उन्होंने खिलाफत आन्दोलन तथा पूर्ण स्वाधीनता का पूर्ण समर्थन किया। कांग्रेस पार्टी में भी उनका उत्कृष्ट स्थान था वे इसकी कार्यकारी समिति के सदस्य तथा कई वर्षों तक इसके महासचिव के पद पर रहे। जब कभी वे दिल्ली आते तो गांधीजी उनके ठहरने की व्यवस्था अपने यहां करते थे। वे दिल्ली के जामिया इस्लामिया तथा बनारस में कांशी विद्यापीठ के मुख्य संस्थापक थे।

 


बनारसी दास चतुर्वेदी

बनारसी दास चुतुर्वेदी का जन्म आगरा के जिले फिरोजाबाद के निम्न वर्गीय ब्राह्मण परिवार में 24 दिसम्बर, 1892 में हुआ था।

बनारसी दास ने अपने कैरियर की शुरूआत एक शिक्षक के रूप में की थी। उन्होंने फारूखाबाद, इन्दौर, शान्ति निकेतन तथा गुजरात विद्यापीठ में अध्यापन कार्य किया। बनारसी दास ने विदेशों में आवासी भारतीयों में रूचि दिखायी थी।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1924 में उन्हें केन्या, उगाण्डा, तनगनयिका तथा जन्जीबार आदि देशों में भारतीय प्रवासियों की स्थिति का अध्ययन करने हेतु प्रतिनियुक्ति पर भेजा। 

बनारसी दास ने विशाल भारत, मधुकर तथा विन्धावनी के सम्पादक के रूप में कार्य किया था। उन्होंने प्रायः नवजीवन, चांद, मर्यादा और नर्मदा जैसी पत्रिकाओं में भी लिखा था।

बनारसी दास चतुर्वेदी 1952 से 1962 तक राज्य सभा के सदस्य रहे। हिन्दी के वे प्रबल अधिवक्ता थे। उन्होंने भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के शहीदों के विषय में व्यापक रूप से अपनी लेखनी चलायी। वे 2 मई, 1985 को इस लोक से कूच कर गये।

 


चन्दन सिंह गढ़वाली

चन्दन सिंह गढ़वाली उत्तर प्रदेश के जिले पौड़ी गढ़वाल में पट्टी चौथन के गांव रोनशेहरा में सन् 1891 में पैदा हुए थे। गरीबी के कारण वे प्राथमिक स्तर से अधिक शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाये। वे सन् 1914 में लन्डसडाऊन्स में स्थित गढ़वाली रेजीमेन्ट केन्द्र में भर्ती हो गए। उन्होंने मेसोपोटामिया और फ्रांस में कार्यवाही देखी। उन्होंने 1921 तक उत्तर पश्चिमी प्रान्त की देख-रेख की। चन्दन सिंह में राष्ट्रीय भावना भी कूट-कूट कर भरी थी। उनकी इस देशभक्ति का प्रमाण हमें 1930 के नमक सत्याग्रह आन्दोलन में देखने को मिला। चन्दन सिंह की बटालिन 218वीं रायल गढ़वाल राइफल्स पेशावर पर तैनात कर दी गयी। 23 अप्रैल को कैप्टन रिकेट अपने 72 सैनिकों के साथ पेशावर के किस्सा खान क्षेत्र तक फैल गये। निहत्थे पठानों की दुकानों को घेर लिया। कैप्टेन ने भीड़ को तीतर-बीतर करने का आदेश दिया और बाज़ार खाली करा दिया। लेकिन आदेश पर अमल नहीं किया गया। उसने गढ़वालियों पर गोली चलाने का आदेश दिया। चन्दन सिंह ने दखल दिया और चिल्लाकर कहा कि गढ़ावाली पर गोली नहीं चलाएंगे। गढ़वालियों ने चन्दन सिंह के आदेश का पालन किया जिस पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। चन्दन सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

चन्दन सिंह को 1941 में रिहा कर दिया गया उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा लिया उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

स्वतन्त्रता के पश्चात् चन्दन सिंह कम्युनिस्ट बन गये। उन्हें 1948 में जेल हुई। अपनी रिहाई के पश्चात् उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन आम जनता की सेवा में बिता दिया। वे 1, अक्टूबर 1979 को 88 वर्ष की अवस्था में इस दुनिया से चले गये।

 


चन्दर भानु गुप्त

चन्दर भानु गुप्त उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के बिजोली नामक स्थान पर 14 जुलाई, 1902 में पैदा हुए थे। उनके प्रारम्भिक जीवन पर आर्यसमाज का रचनात्मक प्रभाव पड़ा। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1925 में स्नात्तकोत्तर और एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की।

सी. बी. गुप्ता स्वाधीनता आन्दोलन में प्रारम्भिक अवस्था मे जुड़ गए थे। वे काकोरी और मेर. षड्यन्त्र में एक प्रतिरक्षा सलाहकार के रूप मे प्रकट हुए। उन्होंने सभी प्रकार के स्वाधीनता आन्दोलनों में भाग लिया तथा अनेक बार जेल की यातनाएं सही। 1937 में वे उत्तर प्रदेश विधायिका के सदस्य चुने गये। 1946 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के मंत्रालय में प्रवेश लिया जब पण्डित वल्लभ पंत ने उन्हें संसदीय सचिव बनाया। वे चार बार उत्तर प्रदश के मुख्य मंत्री बनाये गये। 1969 में कांग्रेस विभाजन के दौरान वे कांग्रेस (ओ) के साथ रहे। वे लखनऊ विश्वविद्यालय में इसके खजाँची के रूप में नजदीक सहयोगी थे।

 


मैथिलीशरण गुप्त

मैथिलीशरण गुप्त झाँसी के समीप चिरगाँव में एक वैश्य परिवार में 1886 में पैदा हुए थे उनके पिता राम चरण कनक धार्मिक मनोवृत्ति के व्यक्ति थे और उनके इस व्यवहार का प्रभाव मैथिलीशरण गुप्त के मस्तिष्क पर गहरे रूप में पड़ा था। उन्होंने अपनी शिक्षा-दिक्षा एक निजी शिक्षक से ग्रहण की थी। वे संस्कृत काव्य एवं धर्म ग्रंथ में पूर्णतः निष्णात थे। वे भगवान राम के परम भक्त थे।

मैथिलीशरण महावीर प्रसाद द्विवेदी से उनके साहित्यिक प्रयासों के कारण गहरे रूप से प्रभावित थे। द्विवेदी ने उन्हें खड़ी बोली में लिखने के लिए उत्पेरित किया, जो कि आम लोगों की भाषा थी। मैथिलीशरण की प्रारम्भिक रचनाएँ, महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित पत्रिका में प्रकाशित हुए।

मैथिलीशरण गुप्त का एक राष्ट्रकवि के रूप में अभिवादन किया गया। भारत-भारती, जयद्रथ, बन्ध, पंचवटी, साकेत, यशोधरा उनकी कुछ श्रेष्ठ रचनाएँ हैं।

मैथिलीशरण गुप्त को 1952 में राज्य सभा के लिए नामांकित किया गया और वे 1964 तक लगातार इस पर बने रहे। 1954 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया।

 


शिव प्रसाद गुप्त

शिव प्रसाद गुप्त बनारस के एक समृद्ध वेश्य परिवार में जून, 1883 में पैदा हुए थे। उन्होंने संस्कृत, पारसी और हिंदी का अध्ययन घर पर ही किया था। उन्होंने इलाहाबाद से स्नात्तक की परीक्षा उत्तीर्ण की। वे पण्डित मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी, आचार्य नरेन्द्र देव तथा डॉ. भगवान दास से अत्यन्त प्रभावित थे। शिव प्रसाद ने क्रांतिकारियों का सहयोग दिया था वे अपनी राष्ट्रवादी गतिविधियों के कारण अनेक बार जेल गये।

शिव प्रसाद ने 'आज' नाम से एक राष्ट्रवादी दैनिक पत्र निकाला। वे काशी विद्यापीठ के संस्थापक थे। उन्होंने बनारस मे भारत माता मन्दिर का भी निर्माण करवाया।

मैथिलीशरण गुप्त का एक राष्ट्रकवि के रूप में अभिवादन किया गया। भारत-भारती, जयद्रथ, बन्ध, पंचवटी, साकेत, यशोधरा उनकी कुछ श्रेष्ठ रचनाएँ हैं।

मैथिलीशरण गुप्त को 1952 में राज्य सभा के लिए नामांकित किया गया और वे 1964 तक लगातार इस पर बने रहे। 1954 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया।

 


रफी अहमद किदवई

रफी अहमद उत्तर प्रेदश के बाराबंकी मसौदी गाँव में 18 फरवरी, 1894 में पैदा हुए थे। दिल्ली में 24 अक्टूबर, 1954 को उनका देहांत हो गया।

रफी अहमद ने शिक्षा अपने गांव तथा अलीगढ़ विश्वविद्यालय से प्राप्त की जहाँ 1918 में उन्हें स्नात्तक डिग्री मिली। उन्होंने असहयोग आन्दोलन में हिस्सा लिया तथा लगभग एक वर्ष के लिए जेल गये। रिहा होने पर उन्होंने मोती लाल नेहरू के निजी सचिव की हैसियत से कार्य किया। सन् 1926 में उन्हें स्वराज पार्टी के टिकट पर केन्द्रीय विधान परिषद् में चुना गया।

सन् 1931 में रफी यू.पी. कांग्रेस समिति के सचिव बनाये गये। सन् 1935 में उन्हें यू.पी. कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष चुना गया। यू.पी. मंत्रीमण्डल का गठन करने के पश्चात् 1946 में उन्हें गृह मंत्री बनाया गया।

सन् 1947 में रफी अहमद संचार मंत्री के रूप में केन्द्रीय मंत्री के रूप में केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में शामिल हुए। 1952 में उन्हें आहार और कृषि मंत्री बनाया गया।

 


डॉ. राम मनोहर लोहिया

डॉ. राम मनोहर लोहिया उत्तर प्रदेश में जिले फैजाबाद के अकबरपुर में 23 मार्च 1910 को पैदा हुए थे। उनके पिता राष्ट्रवादी प्रवृत्ति के साथ एक व्यावसायिक थे।

राम मनोहर लोहिया की माता का देहान्त उनकी बाल्यावस्था में हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी दादी और आण्टी ने किया था।

राममनोहर लोहिया ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अकबरपुर से प्राप्त की। बाद में उन्होंने मुम्बई, बनारस और कलकत्ता में अध्यापन किया। उन्होंने 1932 में बर्लिन विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि ग्रहण की।

राम मनोहर 1933 में भारत वापिस लौट आए। उन्होंने कुछ महीनों तक रामेशवर्धास के यहाँ निजी सचिव की हैसियत से नौकरी की। वे सन् 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गये तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विदेशी विभाग के सचिव बनाये गये। उन्हें 1939 में पहली बार गिरफ्तार किया गया तथा 1940 में वे दोबारा जेल गये।

राम मनोहर लोहिया ने 1942 के आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। वे भूमिगत हो गये तथा कलकत्ता और मुम्बई में कांग्रेस का गुप्त रेडियो प्रसारण किया। राम मनोहर के कांग्रेस नेताओं से तीव्र मतभेद थे। कांग्रेस पार्टी छोड़कर वे अन्य सोशलिस्टों के साथ हो गये तथा प्रथम प्रजा सोशलिस्ट पार्टी तथा बाद में सोशलिस्ट पार्टी आयोजित की।

राम मनोहर 1963 में लोक सभा के सदस्य चुने गये। वे एक प्रभावशाली सांसद थे। 12 अक्टूबर, 1967 में विलिंगडन नर्सिंग होम में उनका देहान्त हो गया।


मौलाना हुसैन अहमद मदानी

मौलाना अहमद मदानी यू. पी. फैजाबाद जिले में टान्डा के सैयाद हबीबुलाह के पुत्र थे। उनके पिता ने उन्हें 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के भागीदारी के बारे में बताया। मदानी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ग्रहण की।

सन् 1892 को उच्च धार्मिक शिक्षा के लिए देवबन्ध मदरसे में प्रवेश लिया। सन् 1911-12 में मौलाना मदानी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक विद्रोह की योजना में क्रांतिकारी समुह के साथ काबुल गये। यह प्रयास सफल नहीं हो सका। उन्हें गिरफ्तार कर 1914 में जेल में डाला गया।

अपनी रिहाई के पश्चात् मौलाना ने सन् 1919 में जमाते-उलेमा ई-हिन्द के नेतृत्व का प्रभार संभाला। उन्होंने कांग्रेस आन्दोलनों में हिस्सेदारी निभायी और अनेक बार गिरफ्तार कर जेल भेजे गये। उन्होंने दो राष्ट्रों के सिद्धान्त का विरोध किया तथा पाकिस्तान की माँग की।


राजा महेन्द्र प्रताप

राजा महेन्द्र प्रताप उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले; मुसरन नामक स्थान पर एक दिसम्बर, 1886 में पैदा हुए थे। उनके पिता एक सम्पन्न जमींदार थे। सन् 1907 में वे इन्टर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् अपनी जायदाद के प्रबन्ध में जुट गये।

राजा महेन्द्र प्रताप का विश्वास था कि भारत को स्वतन्त्रता दिलाने के लिए विदेशी मदद की जरूत है। उन्होंने अफगानिस्तान, अमेरिका, रूस, जर्मनी, जापान तथा चीन आदि देशों से सहायता के उद्देश्य यात्रा की थी तथा वहां तीन दशक का समय व्यतीत किया। उन्होंने काबूल में एक प्रान्तीय सरकार का गठन कर स्वयं उसके अध्यक्ष बने। उन्होंने अमेरिका में गदर पार्टी का भी सहयोग दिया।

राजा महेन्द्र प्रताप को सभी धर्मो की एकता पर गहरा विश्वास था। वे वर्ल्ड फैडरेशन की स्थापना के लिए अत्यन्त उत्सुक थे।

राजा महेन्द्र प्रताप अपने प्रवास से सन् 1945 में भारत वापिस लौट आए। 1957-1962 के दौरान लोक सभा के सदस्य चुने गये जिससे वे बाद में सेवानिवृत्त हुए। सन् 1979 में उनका देहान्त हो गया।


मदन मोहन मालवीय

पण्डित मदन मोहन मालवीय इलाहबाद के एक पाण्डित्य पूर्ण किन्तु गरीब ब्राह्मण परिवार में 25 दिसम्बर, 1861 में पैदा हुए थे। उनके पिता पण्डित ब्रजनाथ संस्कृत के एक विख्यात विद्वान थे।

मदन मोहन ने घर पर ही संस्कृत भाषा का अध्ययन किया उन्होंने जिले की पाठशाला तथा बाद में इलाहाबाद के मयूर सेन्ट्रल कॉलिज में शिक्षा प्राप्त की। सन् 1884 में उन्होंने स्नात्तक की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा 1891 में एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की।

मालवीय ने अपने कैरीयर की शुरूआत एक स्कूल शिक्षक के रूप में की। तदन्तर उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में पर्दापण किया तथा हिन्दुस्तान और इण्डियन यूनियन नामक साप्ताहिक पत्र का सम्पादन किया मर्यादा तथा अभ्यूदय जैसे हिन्दी के पत्रों के साथ उन्होंने निकट से सहयोग दिया।

मालवीय जी बहुत ही कम आयु में सार्वजनिक जीवन की तरफ प्रवृत्त हो गये। वे सन् 1886 में कांग्रेस के दूसरे कलकत्ता अधिवेशन में उपस्थित हुए थे। उन्होंने उस अधिवेशन पर प्रभावी भाषण दिया। जिसकी प्रशंसा ए. ओ. ह्यूम ने भी की। मालवीय को 1882 और 1892 के इलाहबाद कांग्रेस अधिवेशन में आमंत्रित किया गया। उन्हें सन् 1909, 1918, 1933 तथा 1932 में कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया।

मालवीय जी ने ब्रिटिश सरकार की बांटो और राज्य करो की नीति के खिलाफ सन् 1906 में हिन्दू महासभा की नींव रखी।

मालवीय ने सन् 1893 में अपनी वकालत प्रारंभ कर दी। हालांकि वे वकील के रूप में अत्यन्त प्रसिद्ध थे। किन्तु वे विधि व्यवसाय में अधिक समय नहीं रह सके। उन्होंने अपना अधिकांश समय सार्वजनिक गतिविधियों के लिए समर्पित कर दिया।

मालवीय को 1902 में प्रान्तीय विधायी सभा के लिये चुना गया। 1909 में इम्पेरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य चुने गये। उन्होंने सभी की प्रगति में सक्रिय भूमिका निभायी तथा उसके सबसे उत्कृष्ट सदस्य बन गये।

सन् 1916 में मालवीय ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव रखी। उन्होंने धर्म के साथ विज्ञान और तकनीकी का भी अध्ययन किया। बनारस की हिन्दू यूनिवर्सिटी उनके राष्ट्रवादी विचारों का केन्द्र था। उनके असंख्य विद्यार्थी स्वतंत्रता संघर्ष में सक्षम भूमिका नहीं निभा पाए। वे 1919 से 1938 तक कॉलेज के वाइस-चांसलर पद पर रहे, तथा बाद में यहां पर उत्तराधिकार के रूप में डॉ. राधाकृष्ण को सौंपा गया। मालवीय जी हिन्दी के महान अधिवक्ता थे। उन्होंने स्वयं हिन्दी में आलेख और कविताएँ लिखी। सामाजिक मामलों में वे रूढ़ीवादी थे। उनका महात्मा गांधी से घनिष्ठ संबंध था। जो उन्हें अपने बड़े भाई के रूप में मानते थे। उनका व्यक्तिगत जीवन अत्यन्त साधारण था।


द्वारका प्रसाद मिश्रा

द्वारका प्रसाद मिश्रा उत्तर प्रदेश के अननियो जिले के एक ब्राह्मण परिवार में 5 अगस्त, 1901 को पैदा हुए। जब उनके पिता पण्डित अयोध्या प्रसाद रायपुर मे ठेकेदार के रूप में कार्य कर रहे थे तो उस समय वहाँ पर उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने कुछ समय के लिए कानपुर और जबलपुर में अध्ययन किया तथा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से स्नात्तकोत्तर की परीक्षा तथा कानून की डिग्री प्राप्त की।

द्वारका प्रसाद महात्मा गांधी के असयोग आन्दोलन से जुड़ गये और तब से राष्ट्रवादी आन्दोलनों में अग्रिम पंक्ति में रहे वे 1937 और 1946 में केन्द्रीय प्रान्तों के मंत्री रहे। वे कुछ समय के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे थे।

पण्डित मिश्रा एक प्रसिद्ध पत्रकार, कवि और रचनाकार थे। कृष्णायन नामक उनका महाकाव्य कृष्ण के जीवन पर आधारित होकर वर्तमान समय की समस्याओं पर केन्द्रित है।

 


मोहम्मद अली

अली रामपुर में दस नवम्बर, 1878 में पैदा हुए थे। उन्होंने बरेली, इलाहाबाद तथा इंग्लैण्ड में पढ़ाई की। सन् 1896 में बी.ए. की डिग्री इलाहाबाद से ली। उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से. बी.ए. (आर्न्स) की परीक्षा पास की। मोहम्मद अली ने रामपुर राज्य में मुख्य शिक्षा अधिकारी के रूप मे कार्य किया। उन्होंने कुछ वर्षो तक बड़ौदा राज्य में भी नौकरी की।

उन्होंने 1911 में कलकत्ता से 'कामरेड साप्ताहिक' पत्र निकाला। 1912 में वे दिल्ली आ गये। उन्होंने सन् 1913 में उर्दू का हमदर्द नामक दैनिक पत्र शुरू किया।

मोहम्मद अली मुस्लिमों की तरफ ब्रिटिश नीति के एक पृथक आलोचक थे। उन्हें 1915 में गिरफ्तार कर चार वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया।

मोहम्मद अली ने खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया और गांधी जी का समर्थन जीता। मोहम्मद अली ने अतीत में खिलाफत आन्दोलन में अहम भूमिका निभायी। उन्होंने एक नये नेशनल मुस्लिम यूनीवर्सिटी की स्थापना की जो जामिया मिलिया इस्लामिया के रूप में जानी गयी। उन्होंने 1923 में इण्डिन नेशनल कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता की। सन् 1930 में लन्दन में प्रथम गोल मेज सम्मेलन में उपस्थित हुए। जहाँ चार जनवरी, 1931 में उनका देहान्त हो गया।

 


नरेन्द्र देव आचार्य

नरेन्द्र देव उत्तर प्रदेश के सीतापुर में 31 अक्टूबर, 1889 में पैदा हुए थे। वे एक मध्यवर्गीय खत्री परिवार से थे। उनके पिता वकील थे 1883 में वे फैजाबाद में आ बसे थे। नेरन्द्र देव ने फैजाबाद, इलाहाबाद और बनारस से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने 1913 में बनारस से संस्कृत में स्नात्तकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। 1915 में इलाहाबाद से उन्होंने वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की। नरेन्द्र देव बाल गंगाधर तिलक, लाजपत राय, बिपिन चन्द्रपाल तथा अरबिन्दो घोष से अत्यन्त प्रभावित थे। सचिन्द्रनाथ सान्याल जैसे क्रांतिकारियों के प्रति उनकी गहरी सहानुभूति थी। उन्होंने फैजाबाद से वकालत शुरू कर दी। नरेन्द्र देव 1916 में होमरूल आन्दोलन की ओर प्रवृत्त हुए। सन् 1921 में वे काशी विद्यापीठ में एक प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। सन् 1926 में वे काशी विद्यापीठ के प्राचार्य बने। मार्क्सवाद और बौद्ध दर्शन में उनकी तीव्र दिलचस्पी विकसित हुई। कांग्रेस पार्टी के वे एक सक्रिय सदस्य थे। सन् 1934 में उन्होंने कांग्रेस समाजवादी पार्टी की नींव रखी। 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन (1942) में उन्हें कठोर कारवास की सजा हुई वे उत्तर प्रदेश की विधानिका में अनेक वर्षों तक सदस्य रहे।

आ. नरेन्द्र देव एक शिक्षाशास्त्री थे। वे बनारस और लखनऊ विश्वविद्यलयों में वे कुलपति के रूप में कार्यरत रहे। सन् 1952 में विजयलक्ष्मी पण्डित के नेतृत्व में वे एक सद्भावना प्रतिनिधि मण्डल के सदस्य के रूप में चीन गये। उन्हें 1952 में राज्य सभा का सदस्य चुना गया। 12 फरवरी, 1956 में आचार्य नरेन्द्र देव ने अपनी अन्तिम सांस ली।


राम प्रसाद बिस्मिल

राम प्रसाद बिस्मिल सन् 1897 में उत्तर प्रदेश के शाहजहापुर में पैदा हुए थे। वे एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में से थे। उनके पिता मुरलीधर एक साहूकार थे।

राम प्रसाद शिक्षा के क्षेत्र में अधिक बुद्धिमान नहीं थे। वे आर्य समाज से प्रभावित थे तथा उनका झुकाव रिवोल्यूसनरी आन्दोलन की तरफ हो गया। आसफ अली खां उनके घनिष्ठ मित्र थे।

राम प्रसाद बिसमिल ने काकोरी डकैती तथा मैनपुरी षडयन्त्र में हिस्सा लिया। उनके एक सहयोगी ने उनके साथ विश्वासघात कर उन्हें गिरफ्तार कर दिया। उन पर मुकदमा चलाकर उन्हें सन 1927 में फांसी पर लटका दिया गया।


सम्पूर्णान्द

सम्पूर्णान्द का जन्म एक जनवरी, 1889 को बनारस में हुआ था। उनका संबंध एक मध्यवर्गीय कायस्थ परिवार से था। घर का वातावरण पूर्णतः धार्मिक था। सन् 1911 में उन्होने इलाहाबाद से बी.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की। सन् 1916 में उन्होंने एल.टी. की डिग्री प्राप्त की। इसी दौरान उन्होंने स्वयं को नेता के गुणों से निपुण कर लिया था।

सम्पूर्णान्द ने वृन्दावन के प्रेम महाविद्यालय से एक शिक्षक के रूप में अपने कैरियर की शुरूआत की। यह संस्थान खातिप्राप्त क्रांतिकारी राजा महेन्द्र प्रताप द्वारा शुरू किया गया था। सम्पूर्णान्द ने कुछ समय के लिए बीकानेर में भी अध्यापन कार्य किया। पण्डित मदन मोहन मालवीय द्वारा निकाली 'मर्यादा' नामक मासिक पत्रिका का भी उन्होंने सम्पादन किया।

सन् 1921 में सम्पूर्णान्द ने अध्यापन की नौकरी छोड़ दी तथा सक्रिय राजनीति में प्रवेश कर लिया। सन् 1922 में उन्हें आल इण्डिया कांग्रेस कमिटी के लिए चुना गया। अनेक बार वे उत्तर प्रदेश की समिति के सदस्य रहे। सन् 1938-39 के दौरान वे उत्तर प्रदेश के मंत्रिमण्डल में शिक्षा मंत्री के पद पर रहे। सन् 1946 में उन्हें पुनः मंत्री पद मिला। लोक प्रशासन में उन्होंने गृह और वित्तीय मंत्रालय के पद संभाले। जब पण्डित गोविन्द बल्लभ पंत केन्द्रीय मंत्री मण्डल में चले गये तो उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। सम्पूर्णान्द ने कुछ समय के लिए राजस्थान के राज्यपाल का पद भी संभाला। सन् 1969 में उनका देहान्त हो गया।

सम्पूर्णान्द एक लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान थे उन्होंने अनेक पुस्तकों पर अपनी लेखनी चलाई।

 


सचिन्द्रनाथ सान्याल

सचिन्द्रनाथ सान्याल सन् 1895 को बनारस में पैदा हुए थे। उनके पिता हरिनाथ सान्याल एक रूढिवादी ब्राह्मण और पक्के राष्ट्रवादी थे।

सचिन्द्रनाथ ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बनारस से ग्रहण की। सन् 1908 में वे रास बिहारी बोस के सम्पर्क में आये और क्रांतिकारी आन्दोलन में जुड़ गये। रास बिहारी बोस ने सन् 1915 में सशस्त्र आन्दोलन करने का प्रयास किया इसमें वे सफल न हो सके। सचिन्द्र नाथ को गिरफ्तार कर काले पानी की सजा देकर अण्डमान भेज दिया गया।

सन् 1919 में सान्याल को रिहा कर दिया गया उन्होंने मेनपुरी षडयन्त्र केस, बनारस षडयन्त्र केस, बंकुरा केस तथा काकोरी काण्ड जैसे अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों में अहम भूमिका निभायी। उनको आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी। किन्तु सन् 1936 में कांग्रेस मंत्रालय द्वारा उन्हें रिहा कर दिया गया। उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पुनः हवालात में रखा गया। जेल में उनको क्षय रोग ने ग्रसित कर दिया। जिस कारण सन् 1945 को उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी पुस्तक 'बन्दी जीवन' में भारतीय समाज के समाजिक और राजनैतिक पुनर्निर्माण के संबंध में उनके विचार दिये।


लाल बहादुर शास्त्री

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म बनारस के निकट मुगल सराय मे हुआ था। वे निम्न मध्यवर्गीय कायस्थ परिवार से थे। वे अभी मात्र डेढ़ वर्ष के ही थे, कि अचनाक उनके पिता का देहान्त हो गया। नाना के घर पर ही उनका पालन पोषण हुआ था। सन् 1927 में उनका विवाह मिर्जापुर की ललिता देवी के साथ सम्पन्न हुआ। दहेज के रूप में उन्होंने सूत कातने का चरखा और थोड़ा-सा सूत लिया। लाल बहादुर शास्त्री ने बनारस से पढ़ाई की। सन् 1926 में उन्होंने काशी विद्यापीठ से डिग्री प्राप्त की। लाल बहादुर शास्त्र का जीवन प्रारंभिक चरण में ही गांधी की ओर झुकाव हो गया था। गांधीजी उनके लिए दोनों सार्वजनिक और निजी जीवन में आदर्श स्थापित करने वाले थे। उन्होने प्यूपल सोसाइटी में स्वयं को एक सदस्य के रूप में नामांकित किया तथा स्वयं को सार्वजनिक कार्यों के प्रति समर्पति कर दिया। कांग्रेस पार्टी में विभिन्न पदों पर रहे तथा सन् 1946 में मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव बनाये गये। बाद में उन्हें उत्तर प्रदेश में पुलिस और परिवहन मंत्री बनाया गया।

पांचवें दशक के प्रारंभ में लाल बहादुर शास्त्री दिल्ली आकर रहने लगे। सन् 1951 से 1956 तक उन्होंने संघीय मंत्रिमण्डल रेलवे और परिवहन मंत्री के रूप में कार्य किया। सन् 1956 में रेलवे दुर्घटना के कारण उन्हें रेलवे मंत्रालय से इस्तीफ़ा देना पड़ा। 1957 से 1961 तक लाल बहादुर शास्त्री ने विभिन्न मंत्रालयों का भार संभाला जिसमें गृह मंत्रालय भी शामिल था। उन्होंने 1952-1957 तथा 1962 तीनों संसदीय चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाई। सन् 1964 में लाल बहादुर शास्त्री जवाहर लाल नेहरू के उत्तराधिकारी के रूप में भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने थे। सन् 1965 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध के दौरान उन्होंने प्रेरक नेतृत्व प्रदान किया। पाकिस्तान के साथ समझौता करने के लिए वे ताशकंद वार्ता के लिए गये। 1 जनवरी, 1966 को वहीं पर उनका देहान्त हो गया।

 


श्री प्रकाश

श्री प्रकाश का जन्म बनारस के एक वैश्य परिवार में तीन अगस्त, 1890 को हुआ था। उनके पिता डॉ. भगवान दास, एक ख्याति प्राप्त दार्शनिक और रचनाकार थे।

श्री प्रकाश ने सन 1917 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नात्तक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने 1913 में इतिहास तथा 1914 में (लॉ) कानून में डिग्री प्राप्त की।

श्री प्रकाश ने बनारस से अपनी वकालत शुरू की किन्तु कानून की व्यवसाय में उनका मन न लगा। बाद में उन्होंने सेन्ट्रल हिन्दू कालिज में तीन वर्षों तक अध्यापन कार्य किया तथा संपादकीय विभाग में लीडर और इन्डीपेन्डर पत्रों के लिए कार्य किया।

श्री प्रकाश श्रीमती ऐनी बेसेन्ट के व्यक्तित्व से गहरे रूप से जुड़े थे। वे उनके पुत्र के समान थे। वे जवाहर लाल नेहरु, आचार्य जे.बी. कृपलानी, आचार्य नरेन्द्र देव तथा सम्पूर्णान्द जैसे उत्कृष्ट समकालीन नेताओं के सम्पर्क में आए।

श्री प्रकाश ने अपने कैरियर की शुरूआत होम रूल लीग के सदस्य के रूप में की थी। सन् 1918 में वे ऑल इण्डिया कांगे्रस कमेटी के सदस्य चुने गये। सन् 1934 में उन्हें पुनः केन्द्रीय विधान सभा का सदस्य चुना गया। उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए सभी स्वाधीनता आन्दोलनों में भाग लिया तथा अनेक बार जेल गये। स्वतन्त्र भारत में श्रीप्रकाश को पाकिस्तान में प्रथम उच्चायुक्त नियुक्त किया गया। तदन्तर उन्हें असम, मद्रास और महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया। वे केन्द्रीय मंत्रीमंडल में भी शामिल हुए तथा वाणिज्य मंत्रालय (1950-51) प्राकृतिक संसाधनों एवं वैज्ञानिक खोज, मंत्रालयों (1951-52) में कार्यभार संभाला।

श्री प्रकाश सन् 1962 में सक्रिय राजनीति से सेवा-निवृत्त हुए तथा देहरादून में रहने लगे। सन् 1971 को बनारस में उनका देहान्त हो गया।

 


हरिशंकर शर्मा

वह एक तेजवंत क्रांतिकारी थे। उनका नाम था हरिशंकर शर्मा। उनकी उम्र पच्चीस वर्ष के लगभग रही होगी। उनका बदन छरहरा, रंग गोरा औैर चेहरा सुडौल था। उनके उन्नत तलाट, चौड़ी और लंबी नाक, बड़े-बड़े कान तथा चमकीली आँखों ने उनके व्यक्तित्व को भव्यता प्रदान की थी। वह आत्मनिर्भर और स्वामभिमानी युवक थे। अन्याय सहन करना उसके स्वभाव में कहीं नहीं था। यही कराण था कि उन्होंने आगरा के हिंदुस्तानी डिप्टी कलेक्टर को प्राणदंड देने का निश्चय कर लिया और बोतल में बनाया हुआ अपना ही बम लेकर जालिम डिप्टी कलेक्टर को उसका शिकार बनाने के लिए चले।

हरिशंकर का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के सासनी तहसील के ग्राम छोड़ा में हुआ था। उनके पिता का नाम पं शालिग्राम और माता का नाम त्रिवेनी देवी था। पिता की मृत्यु के पश्चात् उनकी माता श्रीमति त्रिवेनी देवी ने ही उनके पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध किया। वे अपने एक रिश्तेदार पं. पूरनमल का सहारा पाकर फिरोजाबाद के निकट ग्राम हुमायूँ पूर में पहुँच गई थीं। फिरोजाबाद के एस.आर.सी.बी. हाई स्कूल में बालक हरिशंकर की शिक्षा का प्रबंध किया था।

घर की परिस्थितियों के कारण हरिशंकर उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। फिरोजबाद के डॉ. प्यारेलाल गहलोत के दवाखाने में वह कंपाउंडरी का काम करने लगे। उनकी शादी हो गई थी और अपनी माता एवं पत्नी का दायित्व भी उन्ही पर था। वह गृहस्थी की गाड़ी चला रहे थे, पर उनका झुकाव राजनीति की ओर था और भारत के क्रांतिकारियों के प्रति उनकी गहरी दिलचस्पी थी। उन दिनों सन् 1930 में कांग्रेस का आंदोलन पूरे जोर पर था और उसी प्रकार उसका दमन भी किया जा रहा था।

हरिशंकर शर्मा की आँखों में आगरा जिले का हिंदुस्तानी डिप्टी कलेक्टर बहुत खटक रहा था, जो आंदोलनकारियों का दमन करने के लिए कुख्यात था। उन्हेे मालूम पड़ गया कि वह डिप्टी कलेक्टर आगरा से फिरोजाबाद पहुँच रहे है।

हरिशंकर शर्मा ने बम बनाना सीख लिया था। उन्होंने बोतल के अंदर एक बोम तैयार किया और उसे अपने कपड़ो में छिपाकर एक ऐसे स्थान पर छिप गए, जिधर से वह डिप्टी कल्केटर निकलने वाला था। दुर्भाग्य से वह बम पहले ही फट गया और स्वयं हरिशंकर शर्मा लहूलुहान होकर भूमि पर पडे रहे। उनकी पहचान के एक सज्जन श्री राधारमण ने उन्हे अस्पताल पहुँचाया; पर वह बचाए नहीं जा सके। एक सुकुमार क्रांतिकारी अपना मौन बलिदान दे गए।

 


मौलाना शौकत अली

शौकत अली का जन्म उत्तर प्रदेश के रामपुर राज्य में 10 मार्च, 1873 में हुआ था। अभी वे 7 वर्ष के ही थे कि उनके पिता अबुल अली खां का देहान्त हो गया। मोहम्मद अली उनके छोटे भाई थे।

शौकत अली ने बरेली और अलीगढ़ से अपनी शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने 17 वर्षों तक अफीम विभाग में कार्य किया। खिलाफत आन्दोलन के दौरान अली भाईयों में शौकत अली और मोहम्मद अली प्रमुख रूप में उभरे। उन्होंने मुस्लिमों के साथ मिलकर गांधी जी के प्रभाव को बढ़ाने में मदद की। खिलाफत आन्दोलन असफल होने के पश्चात् शौकत अली ने कांग्रेस से अपना संबंध तोड़ लिया। जिन्दगी के अन्तिम दिनों के दौरान भारत के केन्द्रीय विधायिका का सलाहकार चुने गये। 26 नवम्बर, 1938 को दिल्ली में उन्होंने अपनी अन्तिम सांस ली।

 

क्रांति १८५७

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